साल 2020 का आखरी प्रदोष: रविवार को ऐसे करें भगवान शिव का प्रसन्न

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साल 2020 की समाप्ति से चंद दिन पहले यानि 27 दिसंबर दिन रविवार को साल 2020 का अंतिम प्रदोष व्रत है। इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार प्रदोष के दिन शिव परिवार की पूजा करना कल्याणकारी होता है।
रविवार के दिन जो प्रदोष व्रत पड़ता है वो रवि प्रदोष व्रत कहलाता है। आइए विस्तार से जानते हैं रवि प्रदोष व्रत की कथा और पूजन विधि...

प्रदोष काल वह समय कहलाता है जिस समय दिन और रात का मिलन होता है। भगवान शंकर की पूजा और उपवास व्रत के विशेष काल और दिन रुप में जाना जाने वाला यह प्रदोष काल बहुत ही उत्तम समय होता है। पंउित सुनील शर्मा के अनुसार इस दौरान भगवान शिव की साधना सारे मनोरथ पूरे करने वाली होती है।

ये व्रत हिंदू पंचांग के अनुसार त्रयोदशी तिथि को होता है। इस दिन पूजा.कीर्तन और व्रत करने से भगवान शिव के भक्त की मनोकामनाएं शीघ्र ही पूरी होती है।

रवि प्रदोष: ऐसे करें शंकरजी की पूजा...
भगवान शिव और माता पार्वती के साथ सूर्य देव का आशीर्वाद पाने के लिए रविवार के दिन पड़ने वाली त्रयोदशी तिथि पर सूर्योदय से पहले यानी ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं। इसके बाद स्नान.ध्यान आदि करके उगते सूर्य को तांबे के पात्र में जलए रोली और अक्षत डालकर अर्घ्य दें।

इसके बाद भगवान शिव और पार्वती का ध्यान करके इस व्रत को विधि.विधान से पूरा करने का संकल्प करें। पूरे दिन नियम और संयम के साथ व्रत करने के बाद शाम के समय एक बार फिर से स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें। स्नान के बाद भगवान शिव की बिल्ब पत्रए कमल या फिर दूसरे किसी पुष्प जो उपलब्ध हो और धतूरे के फल आदि के साथ पूजा करें।

भगवान शिव संग माता पार्वती की पूजा करना बिल्कुल न भूलें। पूजन के बाद रुद्राक्ष की माला से ' ॐ नमरू शिवाय ' मंत्र का कम से कम एक माला जप करें। पूजन के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करके सभी को प्रसाद बांटें। किसी ब्राह्मण को अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन और दक्षिणा आदि का दान दें।

रवि प्रदोष का महत्व...
प्रदोष व्रत की महत्ता सप्ताह के दिनों के अनुसार अलग.अलग होती है। रविवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत और पूजा से आयु वृद्धि तथा अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। रविवार को शिव.शक्ति पूजा करने से दाम्पत्य सुख भी बढ़ता है। इस दिन प्रदोष व्रत और पूजा करने से परेशानियां दूर होने लगती हैं।

रवि प्रदोष का संयोग कई तरह के दोषों को दूर करता है। इस संयोग के प्रभाव से तरक्की मिलती है। इस व्रत को करने से परिवार हमेशा आरोग्य रहता है। साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

रवि प्रदोष व्रत की पूजा का समय शाम 04:30 से शाम 07:00 बजे के बीच उत्तम रहता है, अत: इस समय पूजा की जानी चाहिए। नैवेद्य में जौ का सत्तूए घी एवं शकर का भोग लगाएंए तत्पश्चात आठों दिशाओं में 8‍ दीपक रखकर प्रत्येक की स्थापना कर उन्हें 8 बार नमस्कार करें। इसके बाद नंदीश्वर को जल एवं दूर्वा खिलाकर स्पर्श करें। शिव-पार्वती व नंदकेश्वर की प्रार्थना करें।

रवि प्रदोष व्रत का फल.
भगवान शिवए माता पार्वती संग प्रत्यक्ष देवता सूर्य देव का आशीर्वाद दिलाने वाला रवि प्रदोष व्रत साधक को सुख.समृद्धि के साथ आरोग्य और लंबी आयु का आशीर्वाद दिलाने वाला है। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति रोग.शोक आदि से मुक्त रहता है। दाम्पत्य सुख पाने के लिए भी ये व्रत अत्यंत शुभ माना जाता है।

साल 2021 में आने वाले प्रदोष व्रत की लिस्ट...
आज से 11 दिन बाद नया साल 2021 शुरु होने जा रहा है। ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं साल 2021 में पड़ने वाले प्रदोष व्रत के बारे में। हिंदू पंचांग के अनुसारए हर माह के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत होता है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के साथ उनके परिवार की पूजा की जाती है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसारए प्रदोष व्रत के दिन शिव चालीसाए शिव पुराण और शिव मंत्रों का जाप करना शुभ होता है।

साल 2021 के प्रदोष व्रत की पूरी लिस्ट....

10 जनवरी. प्रदोष व्रत
26 जनवरी. भौम प्रदोष व्रत
09 फरवरी. भौम प्रदोष व्रत
24 फरवरी. प्रदोष व्रत
10 मार्च. प्रदोष व्रत
26 मार्च. प्रदोष व्रत
09 अप्रैल. प्रदोष व्रत
24 अप्रैल. शनि प्रदोष व्रत
08 मई. शनि प्रदोष व्रत
24 मई. सोम प्रदोष व्रत
07 जून. सोम प्रदोष व्रत
22 जून. भौम प्रदोष व्रत
07 जुलाई. प्रदोष व्रत
21 जुलाई. प्रदोष व्रत
05 अगस्त. प्रदोष व्रत
20 अगस्त. प्रदोष व्रत
04 सितंबर. शनि प्रदोष
18 सितंबर. शनि प्रदोष व्रत
04 अक्टूबर. सोम प्रदोष
17 अक्टूबर. प्रदोष व्रत
02 नवंबर. भौम प्रदोष
16 नवंबर. भौम प्रदोष
02 दिसंबर. प्रदोष व्रत
31 दिसंबर. प्रदोष व्रत

प्रदोष व्रत कथा-

एक नगर में तीन मित्र राजकुमारए ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र रहते थे। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थेए धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया थाए लेकिन गौना होना बाकी था। एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे। ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा. ष्नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है।

धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरन्त ही अपनी पत्‍नी को लाने का फैसला ले लिया। तब धनिक पुत्र के माता.पिता ने समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैंए ऐसे में बहू.बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं माना जाताए लेकिन धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी और ससुराल पहुंच गया।

ससुराल में भी उसे मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो नहीं माना। कन्या के माता.पिता को अपनी बेटी की विदाई करनी पड़ी। विदाई के बाद पति-पत्‍नी शहर से निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई। दोनों को चोट लगी लेकिन फिर भी वो चलते रहे। कुछ दूर जाने पर डाकू उनका धन लूटकर ले गए।

दोनों घर पहुंचे वहां धनिक पुत्र को सांप ने डस लिया। उसके पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वो तीन दिन में मर जाएगा। जब ब्राह्मण कुमार को यह खबर मिली तो वो धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता.पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। और कहा कि इसे पत्‍नी सहित वापस ससुराल भेज दें। धनिक ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और ससुराल पहुंच गया। धीरे.धीरे उसकी हालात ठीक हो गई और धन.सपंदा में कोई कमी नहीं रही।



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