इस साल 2021 में 12 फरवरी 2021 दिन शुक्रवार से गुप्त नवरात्रि प्रारंभ होने जा रही है। नवरात्रि के यह नौ दिन मां दुर्गा के नौ रुपों की पूजा-उपासना के दिन होते हैं। ऐसे में नवरात्रि की कड़ी मेंं हम आपको देश के विशेष माता मंदिरों के बारे में बता रहे हैं।
जिसके तहत आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जिसके संबंध में माना जाता है कि ये पुराना प्रसिद्ध मंदिर अपने आप में अलग चमत्कारी शक्ति रूप है, यह मंदिर गुफा के अंदर बसा है और यह मंदिर कत्युर काल युग से सबंध रखता है।
दरअसल आज हम बात कर रहे हैं मां कौमारी देवी गुफा मंदिर की... जो देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से करीब 31 km दूर लमगड़ा ब्लाक के नौरा वन क्षेत्र की सुदर वादियों में स्थित है।
बताया जाता है कि यह काफी पुराना और प्रसिद्ध मंदिर है, जो एक गुफा में मौजूद है। इस मंदिर में अपने आप में अलग चमत्कारी शक्ति की मौजूदगी का अहसास तक होता है। जानकारों के अनुसार ये मंदिर कत्युर काल युग से सबंध रखता है।
दरअसल मां दुर्गा का स्वरुप (कौमारी ) गुफा मंदिर को लेकर कुछ रहस्य ,अलौकिक शक्ति और कथाएं हैं। यह मंदिर चारों ओर जंगलों में चीड ,बुराश ,देवदार के पेडों के बीच है।
इस मंदिर की शिला गुफा मां दुर्गा (कोमारी ) के 108 नामों में से एक है, मंदिर शिवालिक की उस पहाड़ी पर है, जो अपने नाम के कन्याओं और नवविवाहित को सुरक्षा कवच देती है। यह देवी मां का ऐसा अलौकिक स्थल है, जहां से जुड़ी शिव पुत्र कार्तिकेय और पांड्वो की तमाम पौराणिक कथाएं हैं।
मां कौमारी गुफा मंदिर का इतिहास
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस गुफा में स्थित गुफा मंदिर में मां पार्वती ने जब भगवान शिव से कुमार कार्तिकेय और गणेश जी के विवाह करने की जिद पकड़ी, तब महादेव ने व्यवस्था शुरू करते हुए कहा कि दोनों में से जो पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाकर पहले अपने माता -पिता के समक्ष उपस्थित होगा उसे प्रथम अवसर दिया जाएगा।
जिसके बाद कुमार कार्तिकेय अपने वाहन मयूर पर हवा में निकल पड़े, जबकि गणपति वही खड़े रहे और उन्होंने अपने माता- पिता के साथ चक्कर लगाकर प्रणाम किया और सामने खड़े हो गए।
इस पर गजानन से पूछा गया -हे गजानन आप यही खड़े हैं, तो उन्होंने जवाब दिया कि मेरे लिए सम्पूर्ण पृथ्वी अपने माता-पिता है उससे बड़ा कोई नहीं, कथा के अनुसार शिव और पार्वती ने गणेश की आशीर्वाद दे दिया और पृथ्वी का चक्कर लगाकर कुमार कार्तिकेय जब लौटे। तो उन्हें हारा माना गया जिससे कार्तिकेय नाराज होकर कैलाश छोड़कर चले गए।
कथा के अनुसार -कार्तिकेय के दक्षिण की ओर रुख करते हुए बहुत सारी गुफाओ में जब प्रवेश किया तो कुमार कार्तिकेय की शक्ति इन शिलाखंडो में निहित हुई, इसी स्वरूप को यहां मां कौमारी कहा जाता है, इस गुफा में मां के शीलविग्रह की पूजा की जाती है।
यहां मां के मंदिर को कुमारी देवी का मंदिर भी कहा जाता है, देश दुनिया में अन्य स्थानों पर भी मां कुमारी देवी का मंदिर मौजूद हैं, इनमें मुख्य रूप से कुमारी देवी मंदिर, काठमांडु, देवी कुमारी मंदिर, कन्याकुमारी में हैं।
पांडवो से जुडी कथा...
कथाओं के अनुसार पांडवों को बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान यहां की सकारात्मक शक्ति अपनी ओर खीच लाई और उन्होंने यहां रुककर तप भी किया और कई दिनों तक ध्यान किया। इसके तहत यहां गुफा के अंदर विशालकाय गदा के टकराने को प्रमाण के रूप में प्रदर्शित किया जा सकता है, ऐसे कई चित्र यहां प्रदर्शित है...
पुरातात्विक महत्व
यहां गुफा की बाहरी और अंदरूनी दीवारें पुरातात्विक महत्व दर्शाती हैं, वहीं भीतर भाग में (उल्टी छत ) में दिखने वाले गोलाकार गड्डे और लकीरें भी बहुत कुछ दर्शाती हैं।
संत महात्माओ का डेरा
मां कौमारी गुफा मंदिर में संत महात्माओं का डेरा लगा ही रहा है, यहां समय समय पर भागवत कथाएं और शिवरात्रि के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। गुफा में विराजमन मां कौमारी देवी को चुनरी ,बिंदी ,शिदुर ,चूड़िया ,श्रंगार आदि चढ़ाने की परंपरा है।
ऐसे पहुंचें यहां...
देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा से 27 KM लमगडा से पहले ठाट बैंड के पास टकोली बाजार से बघाड रोड में धर्मशाला तक जाने के बाद आधा किलोमीटर पैदल रास्ता आपको मां कोमारी गुफा का दिव्य स्वरुप तक पहुंचाएगा।
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