आज यानी 12 फरवरी 2021 से माघ गुप्त नवरात्रि शुरू हो गयीं हैं। जो 21 फरवरी 2021 तक रहेंगी। गुप्त नवरात्रि कई मायनों में चैत्र और शारदीय नवरात्र से अलग होती है। वैसे तो ये नवरात्र भी शक्ति की पूजा के लिए ही होते हैं। लेकिन अपनी गोपनीयता और देवी माँ के अलग स्वरुप के कारण कुछ भिन्न हैं। साथ ही ये मुख्य रूप से तांत्रिक क्रिया के लिए की जाती हैं। ऐसे में आज हम आपको गुप्त नवरात्री की देवियों और उनके मंदिरों के बारे में बता रहे हैं।
गुप्त नवरात्रि की देवी माताएं इस प्रकार हैं...
मां कालिके, मां तारा देवी , ललिता माँ / त्रिपुर सुन्दरी, मां भुवनेश्वरी देवी, माता चित्रमस्ता, मां त्रिपुर भैरवी, माता बग्लामुखी, मां मांतगी , मां धूम्रवती और मां कलमा देवी।
मान्यता के अनुसार देवी मां ने सती और पार्वती के रूप में जन्म लिया था। सती रूप में ही उन्होंने 10 महाविद्याओं के माध्यम से अपने 10 जन्मों बताया था।
देवी माताओं के मंदिर और स्वरुप-
1. मां कालिके - माना जाता है माँ ने ये काली रूप दैत्यों के संहार के लिए लिया था। जीवन की हर परेशानी व दुःख दूर करने के लिए इनकी आराधना की जाती है।
मां कालिका को खासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। मां काली को देवी दुर्गा की दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है। मां काली के चार रूप है- दक्षिणा काली, शमशान काली, मातृ काली और महाकाली।
माता काली के मंदिर -
- दक्षिणेश्वर काली मंदिर, (पश्चिम बंगाल) :
रामकृष्ण परमहंस की आराध्या देवी मां कालिका का कोलकाता में विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। इस स्थान पर सती देह की दाहिने पैर की चार अंगुलियां गिरी थी। इसलिए यह सती के 52 शक्तिपीठों में शामिल है।
इस स्थान पर 1847 में जान बाजार की महारानी रासमणि ने मंदिर का निर्माण करवाया था। 25 एकड़ क्षेत्र में फैले इस मंदिर का निर्माण कार्य सन् 1855 पूरा हुआ। कोलकाता के उत्तर में विवेकानंद पुल के पास स्थित इस पूरे क्षेत्र को कालीघाट कहते हैं।
- मां गढ़ कालिका, उज्जैन (मध्यप्रदेश) :
उज्जैन के कालीघाट स्थित कालिका माता का प्राचीन मंदिर हैं, जिसे गढ़ कालिका के नाम से जाना जाता है। उज्जैन क्षेत्र में मां हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के कारण इस क्षेत्र का महत्व बढ़ जाता है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर मां भगवती सती के ओष्ठ गिरे थे।
तांत्रिकों की देवी कालिका के इस चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई नहीं जानता, फिर भी माना जाता है कि इसकी स्थापना महाभारत काल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सतयुग के काल की है। बाद में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है। स्टेटकाल में ग्वालियर के महाराजा ने इसका पुनर्निर्माण कराया। कालजयी कवि कालिदास गढ़ कालिका देवी के उपासक थे।
- महाकाली शक्तिपीठ, पावागढ़ (गुजरात) :
गुजरात की ऊंची पहाड़ी पावागढ़ पर बसा मां कालिका का शक्तिपीठ सबसे जाग्रत माना जाता है। यहां स्थित काली मां को महाकाली कहा जाता है। कालिका माता का यह प्रसिद्ध मंदिर मां के शक्तिपीठों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती के दाहिने पैर की अंगुलियां पावागढ़ पर्वत पर गिरी थी।
यह मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण्य के पास स्थित है, जो वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पावागढ़ मंदिर ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। रोप-वे से उतरने के बाद आपको लगभग 250 सीढ़ियां चढ़ना होंगी, तब जाकर आप मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंचेंगे।
- कालिका मंदिर, कांडा मार्केट-कांडा जिला बागेश्वर (उत्तराखंड) :
इस कालिका मंदिर की स्थापना दसवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। कैलाश यात्रा पर यहां पहुंचे जगद्गुरु शंकराचार्य ने लोगों की रक्षा के लिए मां काली के विग्रह की स्थापना पेड़ की एक जड़ पर की थी। इस स्थान पर 1947 में एक मंदिर बना दिया गया।
लोक मान्यता के अनुसार इस क्षेत्र में काल का आतंक था। वह हर साल एक नरबलि लेता था। वह अदृश्य काल जिसका भी नाम लेता, उसकी तत्काल मृत्यु हो जाती थी। लोग परेशान थे। परेशान लोगों ने शंकराचार्य से अपनी आपबीती सुनाई। जगद्गुरु ने स्थानीय लोहारों के हाथों लोहे के नौ कड़ाहे बनवाए। लोक मान्यताओं के अनुसार उन्होंने अदृश्य काल को सात कड़ाहों के नीचे दबा दिया। इसके ऊपर एक विशाल शिला रख दी। उन्होंने यहां एक पेड़ की जड़ पर मां काली की स्थापना की। तब से काल का खौफ खत्म हो गया।
- भीमाकाली मंदिर, शिमला (हिमाचल) :
शिमला से करीब 180 किलोमीटर की दूरी पर सराहन में व्यास नदी के तट पर भीमाकाली मंदिर स्थित है। माना जाता है कि यहां पर देवी सती के कान गिरे थे। इसलिए यह शक्तिपीठ के रुप में जाना जाता है। यहां पर देवी ने भीम रुप धारण करके असुरों का वध किया था इसलिए देवी भीमा कहलाती हैं। यहां देवी काली की पूजा होती है। कहते हैं भगवान श्री कृष्ण ने यहां वाणासुर का वध किया था।
इसके आलावा कालिका के प्राचीन मंदिर, गोवा के नार्थ गोवा में महामाया, कर्नाटक के बेलगाम में, पंजाब के चंडीगढ़ में और कश्मीर में स्थित है।
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2. मां तारा देवी मंदिर - सौंदर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग के साथ ही. मोक्ष देने वाली मानी जाती है।
मंदिर - शिमला के साथ लगती चोटी पर स्थित मां तारा का मंदिर हर मनोकामनाओं का पूरी करने वाला है। शिमला शहर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर बनाया गया यह मंदिर काफी पुराना है। हर साल यहां लाखों लोग मां का आर्शीवाद लेने पहुंचते हैं।
कहा जाता है कि करीब 250 साल पहले मां तारा को पश्चिम बंगाल से शिमला लाया गया था। सेन काल का एक शासक मां तारा की मूर्ति बंगाल से शिमला लाया था।
जहां तक मंदिर बनाने की बात है तो राजा भूपेंद्र सेन ने मां का मंदिर बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि एक बार भूपेंद्र सेन तारादेवी के घने जंगलों में शिकार खेलने गए थे।
इसी दौरान उन्हें मां तारा और भगवान हनुमान के दर्शन हुए। मां तारा ने इच्छा जताई कि वह इस स्थल में बसना चाहती हैं ताकि भक्त यहां आकर आसानी से उनके दर्शन कर सके। इसके बाद राजा ने यहां मंदिर बनवाना शुरू किया।
3. ललिता माँ / त्रिपुर सुन्दरी :- श्री ललिता देवी को त्रिपुर सुन्दरी के नाम से भी जाना जाता है। ललिता लाल वस्त्र पहनकर कमल पर बैठी हैं। इनकी पूजा समृद्धि व यश प्राप्ति के लिए की जाती है।
मंदिर - सीतापुर के नैमिषारण्य में स्थित ललिता देवी मंदिर वहीं मंदिर कहलाता है जहां माता सती का ह्रदय यानि दिल गिरा था। बता दें कि नैमिषारण्य तीर्थ ऋषि मुनियों की तपोभूमि माना जाता है। इस स्थान पर एक चक्र तीर्थ भी है। मान्यताओं के मुताबिक इस चक्र तीर्थ में भगवान विष्णु का चक्र गिरा था। पौराणिक कथाओं के अनुसार चक्र तीर्थ में स्नान करने वाले मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं।
नेमिषारण्य में ही माता ललिता देवी का प्रसिद्ध धाम है। इस मंदिर की एक खास बात ये भी है कि यहां जो भी मां का भक्त अपने मन में सच्ची श्रद्धा भाव से आता है वो कभी खाली हाथ नहीं लौटता है, मां उसकी सभी मन्नते ज़रूर पूरी करती हैं।
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4. मां भुवनेश्वरी देवी - माता भुवनेश्वरी ऐश्वर्य की स्वामिनी हैं। देवी देवताओं की आराधना में इन्हें विशेष शक्ति दायक माना जाता हैं। ये समस्त सुखों और सिद्धियों को देने वाली हैं।
मंदिर - प्रसिद्ध भुवनेश्वरी मंदिर गुवाहाटी में नीलाचल की पहाड़ी पर स्थित है। इसे भुवनेश्वरी देवी के सम्मान में बनवाया गया था। हिन्दू धर्म के अनुसार भुवनेश्वरी देवी 10 महाविद्या देवी में चौथी देवी है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 7वीं से 9वीं शताब्दी के बीच करवाया गया था।
पत्थरों से बनी इस मंदिर की संरचना कामाख्या मंदिर से काफी मिलती-जुलती है और यहां से आप आसपास के शांत माहौल का आनंद ले सकते हैं। यहां हर दिन करीब 100 पर्यटक आते हैं। अम्बुबाची और मनाशा पूजा के दौरान यह मंदिर पूरे विश्व से बड़ी संख्या में पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है।
- मां भुवनेश्वरी सिद्धपीठ सांगुड़ा, उत्तराखण्ड : पौड़ी गढ़वाल के बिलखेत, सांगुड़ा स्थित मां भुवनेश्वरी सिद्धपीठ पहुंचने के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग 119 पर कोटद्वार-पौड़ी के मध्य कोटद्वार से लगभग 54 किमी तथा पौड़ी से 52 किमी की दूरी पर स्थित एक छोटे से कस्बे सतपुली तक पहुंचना पड़ता है। सतपुली से बांघाट, ब्यासचट्टी, देवप्रयाग मार्ग पर लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर प्राकृतिक सुन्दरता तथा भव्यता से परिपूर्ण सांगुड़ा नामक स्थान पर यह मां भुवनेश्वरी सिद्धपीठ स्थित है।
5. माता छिन्नमस्ता / चित्रमस्ता : मां छिन्नमस्तिका की उपासना से भौतिक वैभव की प्राप्ति, वाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएं मिलती हैं।
मंदिर - झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर रजरप्पा में छिन्नमस्तिका देवी का मंदिर स्थित है. ये मंदिर शक्तिपीठ के रूप में काफी विख्यात है. असम में स्थित मां कामाख्या मंदिर को दुनिया की सबसे बड़ी शक्तिपीठ कहा जाता है, जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ रजरप्पा में स्थित मां का छिन्नमस्तिका मंदिर है
6. मां त्रिपुर भैरवी : मां त्रिपुर भैरवी तमोगुण और रजोगुण की देवी हैं। इनकी आराधना विशेष विपत्तियों को शांत करने और सुख पाने के लिए की जाती है।
मंदिर - वाराणसी की विशिष्ट शैली की सकरी गलियों में मां त्रिपुर भैरवी का मंदिर स्थित है। इस मंदिर के पास से गुजरने वालों के सिर मां के समक्ष अपने आप झुक जाते हैं। माना जाता है कि मां त्रिपुर भैरवी के दर्शन-पूजन से सभी प्रकार के दुःख दूर हो जाते हैं। मां का ऐसा महात्म्य है कि इनके आस-पास का पूरा मोहल्ला त्रिपुर भैरवी के नाम से जाना जाता है। मां त्रिपुर भैरवी का स्थान 10 महाविद्या में 5 वें नंबर का है। कहा जाता है कि मां की अद्भुत प्रतिमा स्वयं भू है। इनके भक्तों को सहज रूप से विद्या प्राप्त होती है।
7. माता बग्लामुखी : देवी बगलामुखी शत्रु को खत्म करने वाली देवी हैं। ये अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनकी बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।
मंदिर - मध्यप्रदेश में तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का यह मंदिर शाजापुर तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। द्वापर युगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। यहाँ देशभर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं।
भारत में माँ बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है।
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8. मां मांतगी : गृहस्थ सुख, शत्रुओं का नाश, विलास, अपार सम्पदा, वाक सिद्धि। कुंडली जागरण, आपार सिद्धियां, काल ज्ञान, इष्ट दर्शन आदि के लिए मातंगी देवी की साधना की जाती है।
मंदिर - मोढेरा,गुजरात में मातंगी मोढेश्वरी मंदिर मोढेश्वरी माता को समर्पित है और विश्व प्रसिद्ध और विरासत मोढ़ेरा सूर्य मंदिर के पास है। देवी मोद समुदाय की प्रमुख देवी हैं।
9. मां धूम्रवती : धूमावती देवी का स्वरुप बड़ा मलिन और भयंकर है। दरिद्रता नाश के लिए, तंत्र मंत्र, जादू टोना, बुरी नज़र, हर तरह के भय से मुक्ति के लिए मां धूमावती की साधना की जाती है।
मंदिर - मां धूमावती का मंदिर का यह मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में प्रसिद्ध शक्तिपीठ पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में स्थित है। इस मंदिर की मान्यता है कि यहां से कोई खाली झोली नहीं जाता है। पूरे भारत में मां धूमावती का एक मात्र मन्दिर है यहां से कोई पुकार कभी अनसुनी नहीं जाती। राजा हो या रंक, मां सभी पर एक समान कृपा बरसातीं हैं। वहीं मां धूमावती श्वेत वस्त्र धारिणी है और इनका वाहन कौवा माना जाता है। मां धूमावती का अवतार पापियों के नाश के लिए हुआ। शरीर से उठते धुएं के कारण ही इनका नाम धूमावती पड़ा। दुर्वासा की मूल शक्ति इन्हीं को माना गया है। इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि भक्तों के लिए धूमावती का मंदिर शनिवार को सुबह-शाम 2 घंटे के लिए खुलता है और भक्तों को मां धूमावती के दर्शन का सौभाग्य सिर्फ आरती के समय ही प्राप्त होता है।
10. मां कलमा देवी : मां कमला धन सम्पदा की अधिष्ठात्री देवी हैं, भौतिक सुख की इच्छा रखने वालों के लिए इनकी आराधना सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
साथ ही इनका पूजन करने से जीवन से दरिद्रता, संकट, गृहकलह और अशांति हमेशा-हमेशा के लिए दूर होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। शास्त्रों में इनके रूप को वर्णित करते हुए बताया गया है कि मां को श्वेत वर्ण के चार हाथी सूंड में सुवर्ण कलश लेकर सुवर्ण के समान कांति लिए हुए स्नान करवाते हैं। मां कमला कमल पर आसीन कमल पुष्प धारण किए हुए सुशोभित होती हैं।
मंदिर - कमला देवी मंदिर कच्छ के भुज नारायण सरोवर में और जामनगर गुजरात में भी मौजूद है ।
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