जीवन में हर आशा को पूरा करने के लिए आसामाई का प्रसन्न होना अति महत्वपूर्ण माना जाता है। माना जाता है कि इनके अप्रसन्न होने पर जीवन की सभी खुशियां व सुख नष्ट हो जाते हैं।
आसामाई की पूजा तीन महीनों यानि वैशाख,आषाढ़ और माघ के किसी भी रविवार के दिन की जा सकती है। वहीं किसी किसी परिवार में यह पूजा वर्ष में दो या तीन बार भी होती है।
पंडित सुनील शर्मा के अनुसार ये VRAT संतान की मंगल कामना व सुख सौभाग्य के लिए किया जाता है। यह व्रत घर की बुजुर्ग महिलाओं को करना चाहिए। अधिकतर किसी पुत्र की मां यह व्रत करती है। व्रत रखने वाली महिला इस दिन पूजा के बाद दिन में केवल एक बार बिना नमक का भोजन करती है। जबकि शाम के समय केवल फलाहार किया जाता है।
Must Read - वरुथिनी एकादशी 2021 कब है, जानें शुभ समय, पूजा विधि और क्या न करें इस दिन
पूजा विधि...
इसमें एक पान के पत्ते पर सफेद चंदन से एक पुतली का चित्र बनाया जाता है, फिर उस पर चार कौड़ियां रखकर पूजा की जाती है। चौक पूर कर उस पर कलश स्थापित किया जाता है। उसके पास ही एक चौकी पर आसामाई की स्थापना की जाती है।
इसके बाद पंडित पंचांग पूजन कराकर कलश और आसामाई का विधिपूर्वक पूजन festival करता है। पूजन के बाद पंडित बारह गांठ एक गंडा व्रत करने वाली महिला को देता है। उस गंडे को हाथ में पहनकर आसामाई को भोग लगाया जाता है।
पूजा के बाद सब सामग्री जल में सिराही जाती है, साथ ही वह गंडा भी सिराह दिया जाता है। पूजा वाली कौड़ियां रख ली जाती हैं और फिर वे ही पूजा के काम आती हैं। यदि उनमें से कोई कौड़ी खो जाए तो उसके स्थान पर नई कौड़ी पूजा में रख ली जाती है।
इस दौरान खीर,पुए आदि पकवान बनाए जाते हैं। पूजा के लिए आसें यानि लंका के नक्शे की आकृति के पुए विशेष रूप से बनाए जाते हैं। पुतली पर रक्षा के लिए कच्चा धागा चढ़ाया जाता है, जिससे मां अपनी संतान की मंगल कामना करती है।
Read More- आज बुध जा रहे हैं वृषभ राशि में, जानिये आप पर असर और किनका बदलेगा भाग्य
आसामाई पूजा कथा...
पूर्व समय में एक राजा का एक ही पुत्र था, वहीं इकलौता होने के कारण लाड़ प्यार के चलते वह काफी शरारती हो गया और उधम मचाता रहता था। वह अक्सर पनघट पर बैठकर जल भरने आई महिलाओं के घड़े गुलेल से तोड़ देता था। उसकी इन शरारतों से परेशान होकर लोगों ने राजा से उसकी शिकायत की, जिस पर राजा ने कहा कि कोई भी मिट्टी का घड़ा लेकर पानी भरने न जाए।
जिसके बाद सभी महिलाएं तांबे व पीतल के बर्तन पानी भरने के लिए लाने लगी। इस पर राजकुमार ने उनके बर्तनों को उलटा कर पानी बिखेरना शुरु कर दिया। कई बार वह बर्तन ही फेंक देता जिससे वह पिचक जाते। इन शरारतों के चलते लोग एक बार फिर राजा के पास पहुंचे। तो राजा ने उन्हें समझा बुझा कर वापस भेज दिया।
राजकुमार की लगातार बढ़ रही शरारतों के चलते जनता ने राज्य छोड़ना शुरु कर दिया। इसे देख राजा ने राजकुमार को समझाया , लेकिन उसकी शरारतें कम नहीं हुईं।
एक दिन काफी सोच विचार के बाद राजा ने एक आज्ञा पत्र फाटक पर टांग दिया, जिसमें राजकुमार को देश निकाले का आदेश था। राजकुमार इस समय जंगल में शिकार खेलने गया हुआ था, लौटने पर उसने आज्ञा पत्र पढ़ा और वह घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर चला गया।
Must read- MAY 2021 में कौन-कौन से हैं तीज-त्यौहार, जानें दिन व शुभ समय
जंगल में कुछ दूर पर ही उसे चार वृद्ध स्त्रियां रास्ते पर बैठी मिलींं, इसी समय राजकुमार की चाबुक गिर गई। तो वह घोड़े से उतरा और चाबुक उठाकर फिर घोड़े पर सवार हो गया।
उन वृद्ध स्त्रियों ने समझा कि राजकुमार ने उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने राजकुमार से पूछा कि उसने उनमें से किसको प्रणाम किया। तो राजकुमार बोला तुम में से जो सबसे बड़ी हैं, मैंने उनको प्रणाम किया।
इस पर वृद्ध महिलाएं बोली हम सब समान अवस्था वाली हैं और अपनी अपनी जगह सब बड़ी हैं। तुम्हें किसी एक को बताना चाहिए।
राजकुमार को एक वृद्धा ने अपना नाम भूखमाई बताया, जिस पर राजकुमार ने कहा कि तुम्हारा कोई खास लक्ष्य नहीं है। भूख रूखे सूखे टुकड़ों में मिट सकती है और 56 प्रकार के व्यंजनों से भी, मैंने तुम्हें प्रणाम नहीं किया।
दूसरी वृद्धा ने अपना नाम प्यासमाई बताया, जिस पर राजकुमार ने कहा कि तुम भी भूखमाई की तरह हो, प्यास गंगाजल से भी शांत हो जाती है और पोखर के गंदे पानी से भी, मैंने तुम्हें भी प्रणाम नहीं किया।
तीसरी वृद्धा ने अपना नाम नींदमाई बताया। जिस पर राजकुमार ने कहा कि तुम भी लक्ष्य रहित हो, पुष्पों की शैय्या की तरह ही पत्थरों पर भी नींद आ जाती है। मैंने तुम्हें भी प्रणाम नहीं किया।
अंत में चौथी वृद्धा ने अपना नाम आसामाई बताया। इस पर राजकुमार ने कहा कि ये भूख, प्यास और नींद तीनों मनुष्य को व्याकुल कर देती हैं, लेकिन तुम उन्हें शांति प्रदान करती हो, मैंने तुम्हें ही प्रणाम किया है।
राजकुमार की बात सुनकर आसामाई बड़ी प्रसन्न हुईं और उसे चार कौड़िया देकर बोलीं जब तक ये तुम्हारे पास रहेंगी, तब तक तुम्हें युद्ध व जुए में कोई नहीं हरा सकेगा। तुम जो भी कार्य करोगे उसमें सफलता पाओगे। तुम्हारी इच्छित वस्तु तुम्हें मिल जाएगी। आसामाई के आशीर्वाद को शिरोधार्य कर राजकुमार आगे चल दिया।
घूमते घूमते राजकुमार एक नगर में पहुंचा जहां के राजा सहित अन्य को भी जुआ खेलने का शौक था। राजकुमार अपने घोड़े को पानी पिलाने उस घाट पर पहुंचा जहां राजा का धोबी राजा के कपड़े धो रहा था।
राजकुमार को देखकर धोबी बोला कि घोड़े को पान पिलाने से पहले मेरे साथ जुआ खेलो, यदि तुम जीत गए तो राजा के कपडत्रे भी जाना और घोड़े को पानी भी पिला लेना। लेकिन हार गए तो घोड़ा यहीं छोड़ जाना।
Read more- May 2021 में 4 प्रमुख ग्रह करेंगे राशि परिवर्तन, जानें इनका आप पर असर
यह सुनकर राजकुमार जुआ खेलने को तैयार हो गया और आसामाई की कृपा से वह जुए में जीतता ही गया। लेकिन राजकुमार ने शर्त के अनुसार राजा के कपड़े नहीं लिए, केवल घोड़े को पानी पिलाकर आगे चल दिया।
धोबी ने राजा से जाकर कहा कि मैंने जुए का एक ऐसा खिलाड़ी देखा है जिसे हराना सरल नहीं है। धोबी की बात सुनकर राजा की भी उससे जुआ खेलने की इच्छा हुई। राजा ने उस राजकुमार को बुलाकर उसके साथ जुआ खेलना शुरु कर दिया।
कुछ ही देर में राजकुमार ने राजा की समस्त धन दौलत, राज पाठ सब जीत लिया। राजा ने अपने मंत्रियों से सलाह लेते हुए पूछा कि उसे अब क्या करना चाहिए। इस पर चापलूस सदस्य राजा से बोले, महाराज इसे मरवा दो। वहीं राजा के एक वृद्ध मंत्री ने सलाह दी कि राजकुमारी से इसका विवाह कर दिया जाए तो लड़का अपना ही हो जाएगा।
वृद्ध मंत्री की बात राजा के समझ में आ गई और उसने राजकुमार का विवाह राजकुमारी से कर दिया। विवाह के बाद उन्हें एक अलग महल भी रहने को दे दिया। राजकुमार और राजकुमारी अगल महल में आनंद से रहने लगे।
MUST READ : चीन पर आ रहा है शनि का साया, जानें किस ओर है ग्रहों का इशारा
राजकुमारी अत्यंत सदाचारिणी व विनयशीला थी। यह उसकी सास व नंदे तो थी नहीं, इसलिए उसने कपड़े की कई गुड़ियाएं बनाकर रख लीं। और हर सुबह वह उनहें सास व ननद मानकर पैर छूती और अपना आंचल पसारकर उनका आशीर्वाद लेती।
एक दिन राजकुमार ने उसे ऐसा करते देखा तो उससे पूछा तुम यह क्या करती हो, इस पर राजकुमारी ने उसे सारी बात बता दी। और कहा कि मैं स्त्री धर्म का पालन कर रही हूं। क्योंकि यदि मैं आपके घर होती तो हर रोज अपनी सास व ननद आदि के चरण छूकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती, किंतु यहां सास ननद कोई नहीं हैं। इसलिए मैं इन्हें ही सास ननद मानकर अपना धर्म पालन करती हूं।
यह सुनकर राजकुमार ने कहा कि गुड़ियों के चरण छूने की क्या आवश्यकता है, हमारे परिवार में तो सभी हैं। तुम्हारी इच्छा हो तो पिता से आज्ञा ले लो और मेरे घर चलो। राजकुमारी तैयार हो गई और उसने आपने पिता की आज्ञा ली। राजा ने उनकी यात्रा का पूरा प्रबंध करके बेटी को विदा कर दिया।
राजकुमार नई बहू को लेकर सेना सहित अपने पिता के राज्य के निकट पहुंचा तो प्रजा ने सोचा कि कोई राजा हमारे राज्य पर आक्रमण करने आया है। राजा—रानी तो पुत्र वियोग में रो—रोकर अंधे हो गए थे।
राजा को जब आक्रमण की सूचना मिली तो वे स्वयं ही बिना लड़क राज्य त्यागने की इच्छा से आक्रमणकारी राजा के पास जाने को तैयार हो गए। तभी राजकुमार ने महल के द्वार पर आकर अपने आने की सूचना दी।
पुत्र के लौटने का समाचार पाकर उनकी आंखों की रेशनी वापस आ गई। कुल की परंपरा के अनुसार रानी ने विधिपूर्वक पहले आपनी बहू को महल में प्रवेश कराया। महल में पहुंचकर बहू ने सास-ससुर के चरण छुए और आशीर्वाद लिया।
इसके कुछ समय बाद बहू ने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। इस प्रकार जिस घर मे राज्य में राजकुमर के चले जाने के कारण अंधकार सा हो गया था, वहां आसामाई की कृपा से आनंद छा गया। तभी से आसामाई की पूजा व व्रत का विधान है।
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/2PDbiOv
EmoticonEmoticon