बड़ आदित्य मंदिर: एक ऐसा सूर्य मंदिर जिसमें छुपे हैं कई रहस्य, एक रात में हुआ था निर्माण

Sun temple: देश दुनिया में यूं तो कई जगहों पर सूर्य देव के बड़े व छोटे मंदिर विद्यमान हैं। लेकिन हर मंदिर में सूर्य भगवान की मूर्ति या तो पत्थर से निर्मित है या किसी धातु से। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे पुरातन मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जहां सूर्य भगवान की मूर्ति किसी धातु या पत्थर से निर्मित न होकर बड़ के पेड़ की लकड़ी से बनी है।

दरअसल आदिपंच देवों में से एक सूर्यदेव जो लाल वर्ण, सात घोड़ों के रथ में सवार रहते हैं,उन्हें सर्व कल्याणकारी के साथ ही सर्वप्रेरक व सर्व प्रकाशक माना गया है।

temples near Katarmal Sun Temple Almora Uttarakhand

भगवान सूर्य को “जगत की आत्मा” इसलिए कहा जाता है क्योंकि सूर्य देव से ह़ी पृथ्वी में जीवन है और सूर्य ही नवग्रहों के राजा माने गए हैं। सारे देवताओं में सिर्फ भगवान सूर्य ही कलयुग के दृश्य देव माने गए हैं।

ऐसे में माना जाता है कि जहां भारत के उड़ीसा का कोणार्क सूर्य मंदिर विश्व प्रसिद्ध है, वहीं देवभूमि उत्तराखंड में भगवान सूर्यदेव कटारमल सूर्य मंदिर के रूप में साक्षात विराजते हैं। दरअसल देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार गांव में भगवान सूर्यदेव का भव्य कटारमल सूर्य मंदिर स्थित हैं। जो अल्मोड़ा शहर से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है।

समुद्र तल से लगभग 2116 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद यह सूर्य मंदिर कोणार्क के सूर्य मंदिर से भी लगभग 200 साल पुराना माना जाता है।

मंदिर का निर्माण
इस भव्य कटारमल सूर्य मंदिर का निर्माण करीब 6ठीं से 9वीं शताब्दी के बीच में माना जाता है। उत्तराखंड में उस समय कत्यूरी राजवंश का शासन था। ऐसे में कत्यूरी राजवंश के राजा कटारमल को इस मंदिर के निर्माण का श्रेय जाने के कारण इस मंदिर को कटारमल सूर्य मंदिर कहा जाता हैं। इस मंदिर के संबंध में एक मान्यता ये भी है कि राजा कटारमल ने इसका निर्माण एक ह़ी रात में करवाया था।

Must Read- आदित्य ह्रदय स्त्रोतम् का कब और कैसे करें पाठ?

sunday the surya devta day

मंदिर की खासियत
पहाड़ों के सीढीनुमा खेतों को पार करने के बाद ऊंचे-ऊंचे देवदार के हरे भरे पेड़ों के बीच यह कटारमल सूर्य मंदिर स्थित हैं। वहीं मंदिर में कदम रखते ही इसकी भव्यता, विशालता का अनुभव अपने आप होने लगता है। यहां लकड़ी के दरवाजों में की गयी अद्धभुत नक्काशी और विशाल शिलाओं पर उकेरी गयी कलाकृतियों को हर कोई देखता ही रह जाता है।

पूर्व दिशा की तरफ मुख वाला यह कटारमल सूर्य मंदिर एक ऊंचे वर्गाकार चबूतरे पर बनाया गया है। त्रिरथ संरचना से मुख्य मंदिर बनाया गया है। वहीं वर्गाकार गर्भगृह और शिखर वक्र रेखीय हैं, जो नागर शैली की विशेषता हैं।

मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता...
कटारमल सूर्य मंदिर की सबसे मुख्य खासियत भगवान सूर्य की मूर्ति के बड़ के पेड़ की लकड़ी का होना है, न की किसी धातु या पत्थर की होना, जो‌ अपने आप में अद्भुत व अनोखी है। इसी कारण इस सूर्य मंदिर को “बड़ आदित्य मंदिर” भी कहा जाता है।

Must Read- सिंह संक्रांति 2021: जानें 12 राशियों के लिए क्या कुछ बदलने वाला है?

singh sankranti

वास्तुकला व शिल्पकला के एक अद्भुत नमूने के रूप में मुख्य सूर्य मंदिर के अतिरिक्त इस स्थान पर 45 छोटे-बड़े और भी मंदिर है। जिनमें भगवान सूर्य देव के अलावा भगवान शिव, माता पार्वती, श्री गणेश जी, भगवान लक्ष्मी नारायण, कार्तिकेय व भगवान नरसिंह की मूर्तियां मौजूद हैं।

यह देवभूमि उत्तराखंड का ऐसा मंदिर अकेला है, जहां पर भगवान सूर्य की पूजा बड़ के पेड़ से बनी मूर्ति के रूप में की जाती है।

मंदिर की प्रचलित कथा
पौराणिक उल्लेखों के अनुसार सतयुग में उत्तराखण्ड की कन्दराओं में ऋषि मुनि सदैव अपनी तपस्या में लीन रहते थे, लेकिन असुर समय-समय पर उन पर अत्याचार कर उनकी तपस्या भंग कर देते थे।

एक बार एक असुर के अत्याचार से परेशान होकर दूनागिरी पर्वत, कषाय पर्वत और कंजार पर्वत रहने वाले ऋषि मुनियों ने कोसी नदी के तट पर आकर भगवान सूर्य की आराधना की। जिस पर उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए सूर्य देव ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और उन्हें असुरों के अत्याचार से भय मुक्त किया।

इसके अलावा सूर्य देव ने अपने तेज को एक वटशिला पर स्थापित कर दिया। तभी से भगवान सूर्यदेव यहां पर वट की लकड़ी से बनी मूर्ति पर विराजमान है। कई वर्षों बाद करीब 6ठीं से 9वीं शताब्दी के बीच में राजा कटारमल ने भगवान सूर्य के भव्य कटारमल सूर्य मंदिर का निर्माण इसी जगह पर कराया।



from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/2Vzd1rj
Previous
Next Post »