skanda sashti: हिन्दू पंचांग के अनुसार हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है। इस प्रकार हर साल यह पर्व में 12 और महीने में एक बार आता है। स्कंद षष्ठी का यह पर्व मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव व माता पार्वती के बड़े पुत्र भगवान कार्तिकेय की विशेष पूजा का विधान है साथ ही इस दिन अखंड दीपक भी मंदिरों में जलाए जाते हैं।
ऐसे में इस बार यानि 2021 में शुक्रवार अगस्त 13 को श्रावण, शुक्ल षष्ठी - स्कन्द षष्ठी पड़ रही है। इस तिथि की शुरुआत 13 अगस्त को शाम 05:12 बजे से होगी जिसका समापन 14 अगस्त दोपहर 03:20 बजे होगा।
पुराणों में षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म बताया गया है, इसी कारण इस दिन स्कन्द यानि कार्तिकेय भगवान की पूजा का विशेष महत्व है, वहीं व्रत के लिए पंचमी से युक्त षष्टी तिथि को श्रेष्ठ माना गया है।
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जानकारों के अनुसार स्कंद षष्ठी का व्रत के तहत पंचमी से ही व्रती को उपवास करना शुरु करना चाहिए और षष्ठी को भी उपवास रखते हुए स्कन्द/कार्तिकेय भगवान की पूजा करनी चाहिए।
मान्यता के अनुसार किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस दिन कि गई पूजा-अर्चना फलदायी होती है। माना जाता है कि इसी तिथि को कुमार कार्तिकेय ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था इस कारण यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी माना जाता है।
हिंदू धर्म में देवताओं के सेनापति भगवान कार्तिकेय को युद्ध का देवता माना जाता है और वह हर परिस्थिति में जीत दिलाने का काम करते हैं। ऐसे में वह शिक्षा, नौकरी या फिर बिजनेस पर भी जीत दिलाते हैं। भगवान कार्तिकेय को शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक माना गया हैं।
माना जाता है कि किसी भी तरह के विवाद को निपटाने से पहले भगवान कार्तिकेय की आराधना आपको सफलता प्राप्त कराती है। इसके लिए भगवान कार्तिकेय का ध्यान, पूजन और मंत्रों का जाप करना आवश्यक होता है।
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यह भी माना जाता है कि च्यवन ऋषि को आंखों की ज्योति भी स्कंद षष्ठी की उपासना से ही प्राप्त हुई। ब्रह्मवैवर्तपुराण के मुताबिक स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो गया।
वहीं स्कन्द षष्ठी पूजा से पौराणिक परम्परा भी जुड़ी है, माना जाता है कि भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कन्द की रक्षा छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा की थी। ऐसे में इनके छह मुख हैं और इन्हें कार्तिकेय नाम से भी पुकारा जाता है। पुराण व उपनिषद में भी इनकी महिमा का उल्लेख मिलता है।
जानकारों के अनुसार देवी मां दुर्गा के 5वें स्वरूप यानि स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता माना जाना जाता है। वहीं सुब्रह्मण्यम के नाम से भी भगवान कार्तिकेय को पुकारा जाता हैं और चम्पा पुष्प इन्हें प्रिय माना जाता है।
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स्कंद षष्ठी व्रत विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करने के बाद स्नान-ध्यान कर व्रत का संकल्प लें। फिर घर के पूजा घर में मां गौरी और शिव जी के साथ भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को विराजित करें। जिसके बाद जल, मौसमी फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र आदि से पूजा करें।
फिर अंत में आरती करें। इस दिन शाम के समय कीर्तन-भजन पूजा के बाद आरती करें। इसके बाद ही फलाहार ग्रहण करें।
इस दिन भगवान को स्नान, पूजा के अलावा नए वस्त्र भी पहनाए जाते हैं। वहीं इस दिन भगवान को भोग भी लगाया जाता है। माना जाता है कि किसी विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस दिन की गई पूजा खास फलदायी होती है। इसमें जहां साधक तंत्र साधना भी करते हैं, वहीं नियम के अनुसार इस दौरान मांस, शराब, प्याज, लहसुन का सेवन नहीं करते हुए ब्रह्मचर्य के के तहत संयम रखना होता है।
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स्कंद षष्ठी का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा से जीवन में हर तरह की कठिनाइंया दूर होती हैं और व्रत रखने वालों को सुख और वैभव की प्राप्ति होती है। इसके अलावा यह व्रत संतान के कष्टों को कम कर उसके सुख की कामना के लिए भी किया जाता है।
स्कंद षष्ठी कथा, भगवान कार्तिकेय जन्म कथा
भगवान कार्तिकेय की जन्म कथा के संबंध में पुराणों के अनुसार जब दैत्यों का अत्याचार और आतंक फैल गया तो देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है। ऐसे में सभी देवता भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचे अपनी रक्षा के लिए उनसे प्रार्थना की।
ब्रह्मा ने उनके दुख को देख कर कहा कि तारक का अंत भगवान शिव के पुत्र से ही संभव है, परंतु सती के बाद से भगवान शिव अधिकांश समाधि में ही रहते हैं। यह सुनकर इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास गए, तब भगवान शिव ने उनकी पुकार सुनकर पार्वती से विवाह किया।
शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के पश्चात कार्तिकेय का जन्म हुआ और कार्तिकेय ने देवों को उनका स्थान प्रदान करने के लिए तारकासुर का वध किया।
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