guru pushya nakshatra 2021
Guru Pushya Nakshtra
Guru Pushya Nakshatra
1. पुष्य पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों का राजा कहा गया है। पुष्य नक्षत्र के नाम पर एक माह पौष है। 24 घंटे के अंतर्गत आने वाले तीन मुहूर्तों में से एक 20वां मुहूर्त पुष्य भी है। पुष्य नक्षत्र का संयोग जिस भी वार के साथ होता है उसे उस वार से कहा जाता है। जैसे- गुरुवार को आने पर गुरु-पुष्य, रविवार को रवि-पुष्य, शनिवार के दिन शनि-पुष्य और बुधवार के दिन आने पर बुध-पुष्य नक्षत्र कहा जाता है। सभी दिनों का अलग-अलग महत्व होता है। गुरु-पुष्य और रवि-पुष्य योग सबसे शुभ माने जाते हैं।
Guru Pushya Nakshatra 2.पुष्य नक्षत्र का शाब्दिक अर्थ है पोषण करना या पोषण करने वाला। इसे तिष्य नक्षत्र के नाम से भी जानते हैं। तिष्य शब्द का अर्थ है शुभ होना। कुछ ज्योतिष पुष्य शब्द को पुष्प शब्द से निकला हुआ मानते हैं। पुष्प शब्द अपने आप में सौंदर्य, शुभता तथा प्रसन्नता से जुड़ा है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार गाय के थन को पुष्य नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। इसे 'ज्योतिष्य और अमरेज्य' भी कहते हैं। अमरेज्य शब्द का अर्थ है- देवताओं का पूज्य।
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Guru Pushya Nakshatra 2.बृहस्पति को पुष्य नक्षत्र के देवता के रूप में माना गया है। बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। दूसरी ओर शनि ग्रह पुष्य नक्षत्र के अधिपति ग्रह माने गए हैं इसीलिए शनि का प्रभाव शनि ग्रह के कुछ विशेष गुण इस नक्षत्र को प्रदान करते हैं। चूंकि बृहस्पति शुभता, बुद्धिमत्ता और ज्ञान का प्रतीक हैं, तथा शनि स्थायित्व का, इसलिए इन दोनों का योग मिलकर पुष्य नक्षत्र को शुभ और चिर स्थायी बना देता है।
Guru Pushya Nakshatra 3.पुष्य नक्षत्र के सभी चार चरण कर्क राशि में स्थित होते हैं जिसके कारण यह नक्षत्र कर्क राशि तथा इसके स्वामी ग्रह चन्द्रमा के प्रभाव में भी आता है चन्द्रमा को वैदिक ज्योतिष में मातृत्व तथा पोषण से जुड़ा हुआ ग्रह माना जाता है। शनि, बृहस्पति तथा चन्द्रमा का इस नक्षत्र पर मिश्रित प्रभाव इस नक्षत्र को पोषक, सेवा भाव से काम करने वाला, सहनशील, मातृत्व के गुणों से भरपूर तथा दयालु बना देता है जिसके चलते इस नक्षत्र के प्रभाव में आने वाले जातकों में भी यह गुण देखे जाते हैं। पुष्य नक्षत्र के चार चरणों से से प्रथम का स्वामी सूर्य, दूसरे का स्वामी बुध, तीसरे का स्वामी शुक्र और चौथे का स्वामी मंगल है।
Guru Pushya Nakshatra 4.वैदिक ज्योतिष के अनुसार पुष्य नक्षत्र को सभी नक्षत्रों का राजा कहा गया है। पुष्य को एक पुरुष नक्षत्र माना जाता है जिसका कारण बहुत से वैदिक ज्योतिषी इस नक्षत्र पर बृहस्पति का प्रबल प्रभाव मानते हैं। पुष्य नक्षत्र को क्षत्रिय वर्ण प्रदान किया गया है और इस नक्षत्र को पंच तत्वों में से जल तत्व के साथ जोड़ा जाता है।
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Guru Pushya Nakshatra
मंत्र :
पौराणिक मंत्र : वंदे बृहस्पतिं पुष्यदेवता मानुशाकृतिम्। सर्वाभरण संपन्नं देवमंत्रेण मादरात्।।
वेद मंत्र : ॐ बृहस्पते अतियदर्यौ अर्हाद दुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु।
यददीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविण धेहि चित्रम।
पुष्य नक्षत्र का नाम मंत्र : ॐ पुष्याय नम:।
नक्षत्र देवता के नाम का मंत्र : ॐ बृहस्पतये नम:।
पीपल वृक्ष का मंत्र :
आयु: प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं शरणं गत:।
देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गत:।।
अश्वत्थ ह्युतझुग्वास गोविन्दस्य सदाप्रिय
अशेषं हर मे पापं वृक्षराज नमोस्तुते।।
Guru Pushya Nakshatra करें ये कार्य :
1. पुष्य नक्षत्र पर गुरु, शनि और चंद्र का प्रभाव होता है तो ऐसे में स्वर्ण, लोह (वाहन आदि) और चांदी की वस्तुएं खरीदी जा सकती है। मान्यता अनुसार इस दौरान की गई खरीदारी अक्षय रहेगी। अक्षय अर्थात जिसका कभी क्षय नहीं होता है।
2. इस नक्षत्र में शिल्प, चित्रकला, पढ़ाई प्रारंभ करना उत्तम माना जाता है। इसमें मंदिर निर्माण, घर निर्माण आदि काम भी शुभ माने गए हैं।
3. गुरु-पुष्य के समय छोटे बालकों के उपनयन संस्कार और उसके बाद सबसे पहली बार विद्याभ्यास के लिए गुरुकुल में भेजा जाता है।
4. इस दिन बहीखातों की पूजा करना और लेखा-जोखा कार्य भी शुरू कर सकते हैं। इस दिन से नए कार्यों की शुरुआत करें, जैसे दुकान खोलना, व्यापार करना या अन्य कोई कार्य।
5. इस दिन धन का निवेश लंबी अवधि के लिए करने पर भविष्य में उसका अच्छा फल प्राप्त होता है। इस शुभदायी दिन पर महालक्ष्मी की साधना करने, पीपल या शमी के पेड़ की पूजा करने से उसका विशेष व मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
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