देश के अनेक स्थानों के नाम यूं तो वहां मौजूद किसी खास कारण से रखा गया, ऐसे में जहां गालव ऋषि के नाम पर ग्वालियर हुआ तो वहीं काशी विश्वनाथ मंदिर के कारण काशी का नाम। ऐसे में जहां अभी कुछ ही दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को देश के नाम समर्पित किया गया। वहीं काशी विश्वनाथ मंदिर से मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के राज परिवार का खास नाता भी समाने आया।
ऐसे में आज हम आपको मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के नामकरण से जुड़ी एक खासियत के बारे में बताने जा रहे हैं। दअसल मां अहिल्या की नगरी (इंदौर) में कई प्राचीन मंदिर हैं। ऐसे में इन समस्त मंदिरों का अपना अलग किस्सा भी है।
वहीं यहां के सबसे प्राचीन शिव मंदिरों में से एक इंद्रेश्वर महादेव का मंदिर है। यह मंदिर मध्यक्षेत्र में पंढरीनाथ थाने के पीछे है। बताया जाता है यह मंदिर करीब साढ़े 4 हजार साल पुराना है और इसी मंदिर के नाम से ही शहर का नाम इंदूर पड़ा जो बाद में फिर बदलकर इंदौर हुआ।
इस संबंध में इतिहासकार सुनील मतकर बताते हैं कि जब-जब अल्पवर्षा से शहरवासियों को जल संकट का सामना करना पड़ता है, तब-तब लोग यह आकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी महेंद्रपुरी गोस्वामी के अनुसार कई प्राचीन ग्रंथों में भी इस प्राचीन मंदिर का उल्लेख मिलता है।
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इंद्र ने किया था यहां तप
भगवान इंद्र को जब सफेद दाग की बीमारी हुई तो उन्होंने यहां तपस्या की। महादेव की मंदिर में स्थापना स्वामी इंद्रपुरी ने की थी। उन्होंने शिवलिंग को कान्ह नदी से निकलवाकर प्रतिस्थापित किया। बाद में तुकोजीराव प्रथम ने मंदिर का जीर्णोद्धार किया। राज्य में कोई भी परेशानी आने पर वह भी इंद्रेश्वर महादेव की शरण में ही आते थे।
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भगवान को किया जाता है जलमग्न
इंद्रेश्वर महादेव इंदौर शहर का सबसे प्राचीन मंदिर है जो पंढरीनाथ में करीब चार हजार वर्ष पहले बना था। इतिहासकार मतकर के अनुसार पुराने लोगों का कहना है कि भगवान को स्पर्श करते हुए निकलने वाले जल को ग्रहण करने से कई बीमारियां दूर हो जाती हैं।
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वहीं बारिश के लिए अभिषेक के बाद भगवान को जलमग्न कर दिया जाता हैं, इसलिए मंदिर का नाम इंदेद्रश्वर है। इसी मंदिर के नाम से ही इंदौर का भी नाम पड़ा था। इस इंद्रेश्वर महादेव मंदिर का उल्लेख शिव महापुराण में भी किया है।
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