रवि प्रदोष व्रत : ज्येष्ठ मास का दूसरा प्रदोष व्रत कब, मुहूर्त, पूजा विधि, सामग्री और मंत्र



ज्येष्ठ मास का दूसरा प्रदोष व्रत कब है, जानें पूजा विधि, सामग्री, मंत्र और कैसे करें व्रत
वर्ष 2022 में ज्येष्ठ मास का दूसरा प्रदोष व्रत दिन रविवार, 12 जून को मनाया जाएगा। शास्त्रों में प्रदोष व्रत की बड़ी महिमा है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, प्रदोष व्रत प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को होता है। एक मास में यह व्रत दो बार आता है। यह व्रत करने वाले की स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां दूर होती हैं...यह व्रत करने वाले समस्त पापों से मुक्ति भी मिलती हैं। यहां प्रस्तुत हैं रवि प्रदोष व्रत की जानकारी... 

 

रवि प्रदोष पूजन सामग्री, विधि, मंत्र एवं मुहूर्त-

 

रवि प्रदोष व्रत पूजा मुहूर्त

 

त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ- 12 जून 2022 को 03.23 ए एम से

त्रयोदशी तिथि की समाप्ति- 13 जून 2022 को 12.26 ए एम बजे

प्रदोष पूजा मुहूर्त- 07.19 पी एम से 09.20 पी एम

अवधि- 02 घंटे 01 मिनट

प्रदोष पूजन का सबसे शुभ समय- 07.19 पी एम से 09.20 पी एम


पूजन सामग्री- एक जल से भरा हुआ कलश, एक थाली (आरती के लिए), बेलपत्र, धतूरा, भांग, कपूर, सफेद पुष्प व माला, आंकड़े का फूल, सफेद मिठाई, सफेद चंदन, धूप, दीप, घी, सफेद वस्त्र, आम की लकड़ी, हवन सामग्री।

 

कैसे करें व्रत- रवि प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष व्रतार्थी को नमकरहित भोजन करना चाहिए। यद्यपि प्रदोष व्रत प्रत्येक त्रयोदशी को किया जाता है, परंतु विशेष कामना के लिए वार संयोगयुक्त प्रदोष का भी बड़ा महत्व है। अत: जो लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर हमेशा परेशान रहते हैं, किसी न किसी बीमारी से ग्रसित होते रहते हैं, उन्हें रवि प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए। रविवार को आने वाला रवि प्रदोष व्रत स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। रवि प्रदोष व्रत में पूजन सूर्यास्त के समय करने का महत्व है। 


पूजा विधि- 

- रवि प्रदोष व्रत के दिन व्रतधारी को प्रात:काल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि कर शिवजी का पूजन करना चाहिए। 

- प्रदोष वालों को इस पूरे दिन निराहार रहना चाहिए तथा दिनभर मन ही मन शिव का प्रिय मंत्र 'ॐ नम: शिवाय' का जाप करना चाहिए। 

- तत्पश्चात सूर्यास्त के पश्चात पुन: स्नान करके भगवान शिव का षोडषोपचार से पूजन करना चाहिए।

- रवि प्रदोष व्रत की पूजा में समय सायंकाल सबसे उत्तम रहता है, अत: इस समय पूजा की जानी चाहिए। 

- नैवेद्य में जौ का सत्तू, घी एवं शकर का भोग लगाएं, तत्पश्चात आठों दिशाओं में 8‍ दीपक रखकर प्रत्येक की स्थापना कर उन्हें 8 बार नमस्कार करें। 

- इसके बाद बछड़े को जल पिलाएं एवं दूर्वा खिलाकर स्पर्श करें। 

- शिव-पार्वती एवं नंदीकेश्वर की प्रार्थना करें।


रवि प्रदोष व्रत के मंत्र-

'ॐ नम: शिवाय' 

ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय

ॐ नमःश्री भगवते साम्बशिवाय नमः 

'ॐ नमः शिवाय शुभं शुभं कुरू कुरू शिवाय नमः 

इन मंत्रों का कम से कम 108 बार जप करें।





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