श्रावण मास सोमवार: शिव मंत्र, स्तुति, चालीसा, 108 शिव नाम सब एक साथ

shravan month 2022
 


भगवान शिव जी के खास मंत्र, भोलेनाथ की स्तुति, शिव चालीसा और शिव जी के 108 नाम। यहां पढ़ें... श्रावण सोमवार विशेष सामग्री। 

 

शिव मंत्र

 

1. ॐ नमः शिवाय

 

2. ॐ हौं जूं स:।

 

3. ॐ त्र्यंम्बकम् यजामहे, सुगन्धिपुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।

 

4. ॐ ऐं नम: शिवाय।

 

5. ॐ ह्रीं नम: शिवाय।

 

6. ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमय ह्रीं ऐं ऊं।

 

7. ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्रमसे नम:' ये'ॐ चं चंद्रमसे नम:।

 

8. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्।।

 

9. ॐ जूं स:।

 

10. ऐं ह्रीं श्रीं 'ॐ नम: शिवाय' : श्रीं ह्रीं ऐं। 


 

श्री शिव स्तुति : shri shiv Stuti

 

शिव स्तुति मंत्र 

 

पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।

जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।1।

 

महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।

विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।2।

 

गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।

भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।3।

 

शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।

त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।4।

 

परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।

यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।5।

 

न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।

न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।6।

 

अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।

तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।7।

 

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।

नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।8।

 

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।

शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।9।

 

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।

काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।10।

 

त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।

त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।11।


 

शिव चालीसा पाठ- Shiv Chalisa Path

 

।।दोहा।।

 

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

 

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥

भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लव निमेष महँ मारि गिरायउ॥

आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥

कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥

मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। विघ्न विनाशन मंगल कारण ॥

योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥

ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

त्रयोदशी व्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तधाम शिवपुर में पावे॥

कहत अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

 

॥दोहा॥
 

नित्य नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीस।

तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।

अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥ 


 

108 शिव नाम : Shiv ke 108 Naam

 

1. शिव- कल्याण स्वरूप

2. महेश्वर- माया के अधीश्वर

3. शम्भू- आनंद स्वरूप वाले

4. पिनाकी- पिनाक धनुष धारण करने वाले

5. शशिशेखर- सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले

6. वामदेव- अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले

7. विरूपाक्ष. विचित्र आंख वाले( शिव के तीन नेत्र हैं)

8. कपर्दी- जटाजूट धारण करने वाले

9. नीललोहित- नीले और लाल रंग वाले

10. शंकर- सबका कल्याण करने वाले

11. शूलपाणी- हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले

12. खटवांगी- खटिया का एक पाया रखने वाले

13. विष्णुवल्लभ- भगवान विष्णु के अति प्रिय

14. शिपिविष्ट- सितुहा में प्रवेश करने वाले

15. अंबिकानाथ- देवी भगवती के पति

16. श्रीकण्ठ- सुंदर कण्ठ वाले

17. भक्तवत्सल- भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले

18. भव- संसार के रूप में प्रकट होने वाले

19. शर्व- कष्टों को नष्ट करने वाले

20. त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी

21. शितिकण्ठ- सफेद कण्ठ वाले

22. शिवाप्रिय- पार्वती के प्रिय

23. उग्र- अत्यंत उग्र रूप वाले

24. कपाली- कपाल धारण करने वाले

25. कामारी- कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले

26. सुरसूदन- अंधक दैत्य को मारने वाले

27. गंगाधर- गंगा जी को धारण करने वाले

28. ललाटाक्ष- ललाट में आंख वाले

29. महाकाल- कालों के भी काल

30. कृपानिधि- करूणा की खान

31. भीम- भयंकर रूप वाले

32. परशुहस्त- हाथ में फरसा धारण करने वाले

33. मृगपाणी- हाथ में हिरण धारण करने वाले

34. जटाधर- जटा रखने वाले

35. कैलाशवासी- कैलाश के निवासी

36. कवची- कवच धारण करने वाले

37. कठोर- अत्यंत मजबूत देह वाले

38. त्रिपुरांतक- त्रिपुरासुर को मारने वाले

39. वृषांक- बैल के चिह्न वाली ध्वजा वाले

40. वृषभारूढ़- बैल की सवारी वाले

41. भस्मोद्धूलितविग्रह- सारे शरीर में भस्म लगाने वाले

42. सामप्रिय- सामगान से प्रेम करने वाले

43. स्वरमयी- सातों स्वरों में निवास करने वाले

44. त्रयीमूर्ति- वेदरूपी विग्रह करने वाले

45. अनीश्वर- जो स्वयं ही सबके स्वामी है

46. सर्वज्ञ- सब कुछ जानने वाले

47. परमात्मा- सब आत्माओं में सर्वोच्च

48. सोमसूर्याग्निलोचन- चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले

49. हवि- आहूति रूपी द्रव्य वाले

50. यज्ञमय- यज्ञस्वरूप वाले

51. सोम- उमा के सहित रूप वाले

52. पंचवक्त्र- पांच मुख वाले

53. सदाशिव- नित्य कल्याण रूप वाल

54. विश्वेश्वर- सारे विश्व के ईश्वर

55. वीरभद्र- वीर होते हुए भी शांत स्वरूप वाले

56. गणनाथ- गणों के स्वामी

57. प्रजापति- प्रजाओं का पालन करने वाले

58. हिरण्यरेता- स्वर्ण तेज वाले

59. दुर्धुर्ष- किसी से नहीं दबने वाले

60. गिरीश- पर्वतों के स्वामी

61. गिरिश्वर- कैलाश पर्वत पर सोने वाले

62. अनघ- पापरहित

63. भुजंगभूषण- सांपों के आभूषण वाले

64. भर्ग- पापों को भूंज देने वाले

65. गिरिधन्वा- मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले

66. गिरिप्रिय- पर्वत प्रेमी

67. कृत्तिवासा- गजचर्म पहनने वाले

68. पुराराति- पुरों का नाश करने वाले

69. भगवान्- सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न

70. प्रमथाधिप- प्रमथगणों के अधिपति

71. मृत्युंजय- मृत्यु को जीतने वाले

72. सूक्ष्मतनु- सूक्ष्म शरीर वाले

73. जगद्व्यापी- जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले

74. जगद्गुरू- जगत् के गुरू

75. व्योमकेश- आकाश रूपी बाल वाले

76. महासेनजनक- कार्तिकेय के पिता

77. चारुविक्रम- सुन्दर पराक्रम वाले

78. रूद्र- भयानक

79. भूतपति- भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी

80. स्थाणु- स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले

81. अहिर्बुध्न्य- कुण्डलिनी को धारण करने वाले

82. दिगम्बर- नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले

83. अष्टमूर्ति- आठ रूप वाले

84. अनेकात्मा- अनेक रूप धारण करने वाले

85. सात्त्विक- सत्व गुण वाले

86. शुद्धविग्रह- शुद्धमूर्ति वाले

87. शाश्वत- नित्य रहने वाले

88. खण्डपरशु- टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले

89. अज- जन्म रहित

90. पाशविमोचन- बंधन से छुड़ाने वाले

91. मृड- सुखस्वरूप वाले

92. पशुपति- पशुओं के स्वामी

93. देव- स्वयं प्रकाश रूप

94. महादेव- देवों के भी देव

95. अव्यय- खर्च होने पर भी न घटने वाले

96. हरि- विष्णुस्वरूप

97. पूषदन्तभित्- पूषा के दांत उखाड़ने वाले

98. अव्यग्र- कभी भी व्यथित न होने वाले

99. दक्षाध्वरहर- दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले

100. हर- पापों व तापों को हरने वाले

101. भगनेत्रभिद्- भग देवता की आंख फोड़ने वाले

102. अव्यक्त- इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले

103. सहस्राक्ष- हजार आंखों वाले

104. सहस्रपाद- हजार पैरों वाले

105. अपवर्गप्रद- कैवल्य मोक्ष देने वाले

106. अनंत- देशकालवस्तु रूपी परिछेद से रहित

107. तारक- सबको तारने वाले

108. परमेश्वर- सबसे परम ईश्वर।


Om Namah Shivay

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