हासन. आदिनाथ जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक संघ हासन में विराजित आचार्य महेन्द्रसागर सूरी ने कहा कि महापर्व पर्युषण का पांचवा दिन हमें यह संदेशा देता है कि अपनी पांच इन्द्रियों और मन को वश में करें। आप यह अवलोकन करें कि हमें ये पांच इन्द्रियों और मन क्यों मिला। आंखें गुण दर्शन, प्रभु दर्शन और संत दर्शन के लिए मिली थी नहीं कि दुर्गुण दर्शन और अश्लील चीजें देखने के लिए मिली थी। कान हमें प्रभु के गुणों की चर्चा और गुणियों के गुणगान करने के लिए मिले थे नहीं कि किसी की निंदा चुगली सुनने के लिए मिले थे। घाणेन्द्रिय हमें पदार्थ की अस्थिरता व नश्वरता जानने के लिए मिली थी, नहीं कि दुर्गन्ध की घृणा करने के लिए मिली थी। रसनेन्द्रिय हमें परमात्मा और सज्जनों पुरुषों के गुणगान करने के लिए मिली थी नहीं कि बकने के लिए, स्वाद लेने के लिए या कडवा बोलने के लिए मिली थी। स्पर्शकेन्द्रिय हमें कोमल और खुरदरे स्पर्श से राग द्वेष को बढ़ाने के लिए नहीं मिली थी किन्तु राग-द्वेष को घटाने के लिए मिली थी। मन हमें धर्म चिंतन और सुविचार करने के लिए मिला था नहीं कि दुध्र्यान और दुर्विचार ुकरने के लिए मिला था। दोनों हाथ हमें दान देने के लिए और सेवा करने के लिए मिली नहीं कि किसी को मारने के लिए और प्रताडि़त करने के लिए मिले थे। पैर हमें मंदिर और तीर्थस्थल जाने के लिए मिले थे नहीं कि सिनेमा हल और शराब घर जाने के लिए मिले थे। अष्ट दिवसीय पर्व का यह छट्टा दिन हमे पांच इन्द्रियों और मन को संयमित रखकर जाग्रतपूर्वक इनसे पुण्योपार्जन करने के लिए मिले हैं।
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