10 सितंबर से श्राद्धपक्ष प्रारंभ हो गए हैं। पितृपक्ष के इन सोलह दिनों में पितृ-आराधना हेतु श्राद्ध व तर्पण इत्यादि किया जाता है। शास्त्र का वचन है-"श्रद्धयां इदम् श्राद्धम्" अर्थात् पितरों के निमित्त श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध है।
श्राद्ध पक्ष में पितृगणों (पितरों) के निमित्त तर्पण व ब्राह्मण भोजन कराने का विधान है किन्तु जानकारी के अभाव में अधिकांश लोग इसे उचित रीति से नहीं करते जो कि दोषपूर्ण है क्योंकि शास्त्रानुसार "पितरो वाक्यमिच्छन्ति भावमिच्छन्ति देवता:" अर्थात् देवता भाव से प्रसन्न होते हैं और पितृगण शुद्ध व उचित विधि से किए गए श्राद्धकर्म से।
श्राद्ध पक्ष में तर्पण एवं ब्राह्मण भोजन कराने से पितृ तृप्त होते हैं। श्राद्धपक्ष में नित्य मार्कण्डेय पुराणान्तर्गत "पितृ स्तुति" करने से पितृ प्रसन्न होकर अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं। श्राद्धपक्ष में "कुतप" काल में नित्य तर्पण करना चाहिए।
तर्पण सदैव काले तिल, दूध, पुष्प, कुश, तुलसी, नर्मदा/गंगाजल मिश्रित जल से करें। तर्पण सदैव पितृ-तीर्थ (तर्जनी व अंगूठे के मध्य का स्थान) से करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के लिए श्राद्धकर्म अनिवार्य है, वह करना ही चाहिए लेकिन उससे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण है जीवित अवस्था में अपने माता-पिता की सेवा करना। जिसने जीवित अवस्था में ही अपने माता-पिता को अपनी सेवा से संतुष्ट कर दिया हो उसे अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता ही है। शास्त्र का वचन है-"वित्तं शाठ्यं न समाचरेत" अर्थात् श्राद्ध में कंजूसी नहीं करना चाहिए, अपनी सामर्थ्य से बढ़कर श्राद्ध कर्म करना चाहिए।
श्राद्ध के प्रकार
भविष्यपुराण के अंतर्गत 12 प्रकार के श्राद्धों का वर्णन है। ये बारह प्रकार के श्राद्ध हैं-
1. नित्य- प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध को "नित्य" श्राद्ध कहते हैं।
2. नैमित्तिक- वार्षिक तिथि पर किए जाने वाले श्राद्ध को "नैमित्तिक" श्राद्ध कहते हैं।
3. काम्य- किसी कामना के लिए किए जाने वाले श्राद्ध को "नैमित्तिक" श्राद्ध कहते हैं।
4. नान्दी- किसी मांगलिक अवसर पर किए जाने वाले श्राद्ध को "नान्दी" श्राद्ध कहते हैं।
5. पार्वण - पितृपक्ष, अमावस्या एवं तिथि आदि पर किए जाने वाले श्राद्ध को "पार्वण" श्राद्ध कहते हैं।
6. सपिण्डन- त्रिवार्षिक श्राद्ध जिसमें प्रेतपिण्ड का पितृपिण्ड में सम्मिलन कराया जाता है,"सपिण्डन" श्राद्ध कहलाता है।
7. गोष्ठी- पारिवारिक या स्वजातीय समूह में जो श्राद्ध किया जाता है उसे "गोष्ठी" श्राद्ध कहते हैं।
8. शुद्धयर्थ- शुद्धि हेतु जो श्राद्ध किया जाता है उसे "शुद्धयर्थ" श्राद्ध कहते हैं। इसमें ब्राह्मण-भोज आवश्यक होता है।
9. कर्मांग- षोडष संस्कारों के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है उसे "कर्मांग" श्राद्ध कहते हैं।
10. दैविक - देवताओं के निमित्त जो श्राद्ध किया जाता है उसे "दैविक" श्राद्ध कहते हैं।
11. यात्रार्थ- तीर्थ स्थानों में जो श्राद्ध किया जाता है उसे "यात्रार्थ" श्राद्ध कहते हैं।
12. पुष्ट्यर्थ- पारिवारिक सुख-समृद्धि व उन्नति के लिए जो श्राद्ध किया जाता है उसे "पुष्ट्यर्थ" श्राद्ध कहते हैं।
-ज्योतिर्विद् पं हेमंत रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केंद्र
संपर्क: astropoint_hbd@yahoo.com
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