रुक्मणी अष्टमी कब है, कैसे किया जाता है? जानिए कथा, मंत्र, महत्व, शुभ योग और मुहूर्त

Rukmini Ashtami 2022
 

आज रुक्मिणी अष्टमी (Rukmini Ashtami 2022) मनाई जा रही है। प्रतिवर्ष यह पर्व पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यतानुसार इसी दिन द्वापर युग में देवी रुक्मिणी का जन्म हुआ था, वे विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थी। रुक्मिणी दिखने में अतिसुंदर एवं सर्वगुणों से संपन्न थी। उनके शरीर पर माता लक्ष्मी के समान ही लक्षण दिखाई देते थे, इसीलिए उन्हें लोग लक्ष्मस्वरूपा भी कहते थे। 

 

पौराणिक शास्त्रों में उन्हें लक्ष्मी देवी का अवतार कहा गया है। मान्यतानुसार इस दिन विधिपूर्वक देवी रुक्मिणी का पूजन-अर्चन करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है, घर मे धन-संपत्ति का वास होता है, जीवन में दाम्पत्य सुख की प्राप्ति होती है। द्वापर युग में गोपियों ने पौष अष्‍टमी पर 'कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरू ते नम:' इस मंत्र का जाप किया था। अत: अष्टमी का व्रत रख रहे भक्तों को आज के दिन अधिक से अधिक जाप करना चाहिए।
 

 

रुक्मिणी अष्टमी 2022 मुहूर्त एवं शुभ योग-

पौष कृष्ण अष्टमी तिथि का प्रारंभ- दिन शुक्रवार, 16 दिसंबर 2022 को सुबह 01.39 मिनट से शुरू।

पौष कृष्ण अष्टमी तिथि का समापन- दिन शनिवार, 17 दिसंबर 2022 को सुबह 03.02 मिनट पर।

आज के शुभ योग- 

दोपहर 12.02 मिनट से 12.43 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त का शुभ समय।

16 दिसंबर के दिन सुबह 07.46 मिनट से 17 दिसंबर सुबह 07.34 मिनट तक आयुष्मान योग। 

 

कैसे करें व्रत, पढ़ें पूजन विधि- रुक्मिणी अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण और माता लक्ष्मी के मंत्रों का जप करके उन्हें तुलसी दल डालकर खीर का भोग लगाने से वे प्रसन्न होते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने से तथा दान-दक्षिणा देने से जीवन में शुभ ही शुभ होता है। रुक्मिणी अष्टमी के दिन लक्ष्मी जी, श्री कृष्ण तथा रुक्मिणी का पूजन करना चाहिए। 

 

1. आज के दिन सुबह स्नानादि करके स्वच्छ स्थान पर भगवान श्री कृष्ण और मां रुक्मिणी की प्रतिमा स्थापित करें। 

2. स्वच्छ जल दक्षिणावर्ती शंख में भर लें और अभिषेक करें। 

3. तत्पश्चात कृष्ण जी को पीले और देवी रुक्मिणी को लाल वस्त्र अर्पित करें।

4. कुंमकुंम से तिलक करके हल्दी, इत्र और फूल आदि से पूजन करें।

5. अभिषेक करते समय कृष्ण मंत्र और देवी लक्ष्मी के मंत्रों का उच्चारण करते रहें।

6. तुलसी मिश्रित खीर से दोनों को भोग लगाएं। 

7. गाय के घी का दीपक जलाकर, कर्पूर के साथ आरती करें। सायंकाल के समय पुन: पूजन-आरती करके फलाहार ग्रहण करें। 

8. रात्रि जागरण करें और निरंतर कृष्ण मंत्रों का जाप करें। 

9. अगले दिन नवमी को ब्राह्मणों को भोजन करा कर व्रत को पूर्ण करें, तत्पश्चात स्वयं पारण करें। 

 

इस व्रत की कथा के अनुसार देवी रुक्मिणी भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थी। वे विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं। वे साक्षात् लक्ष्मी की अवतार थीं। रुक्मिणी के भाई उनका विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे, लेकिन देवी रुक्मिणी श्री कृष्ण की भक्त थी, वे मन ही मन भगवान श्री कृष्ण को अपना सबकुछ मान चुकी थी। 

 

जिस दिन शिशुपाल से उनका विवाह होने वाला था, उस दिन देवी रुक्मिणी अपनी सखियों के साथ मंदिर गई और पूजा करके जब मंदिर से बाहर आई तो मंदिर के बाहर रथ पर सवार श्री कृष्ण ने उनको अपने रथ में बिठा लिया और द्वारिका की ओर प्रस्थान कर गए और उनके साथ विवाह किया। 

 

महत्व- धार्मिक शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को हुआ, राधा जी भी अष्टमी तिथि को उत्पन्न हुई और रुक्मिणी का जन्म भी अष्टमी तिथि को हुआ है। इसलिए हिंदू धर्म में अष्टमी तिथि को बहुत ही शुभ माना गया है। 

 

इस दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व माना गया है। यह व्रत घर में धन-धान्य की वृद्धि करने वाला, रिश्तों में मजबूती देने वाला तथा संतान सुख देने वाला माना जाता है।

प्रद्युम्न कामदेव के अवतार थे, वे श्री कृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र थे। इस दिन उनका पूजन करना भी अतिशुभ माना जाता है। अत: रुक्मिणी अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ देवी रुक्मिणी तथा कामदेव का पूजन करने से जहां जीवन मंगलमय हो जाता है, वहीं सर्वसुखों की प्राप्ति भी होती है।
 

 

मंत्र- 

1. धन प्राप्ति का मंत्र- गोवल्लभाय स्वाहा। 

2. गृह क्लेश दूर करने का मंत्र- कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:॥

3. लव मै‍रिज- क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।'

4. धन वापस दिलाने वाला मंत्र- कृं कृष्णाय नमः। 

5. वाणी में मधुरता लाने वाला मंत्र- ऐं क्लीं कृष्णाय ह्रीं गोविंदाय श्रीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा ह्र्सो।

6. विद्या प्राप्ति मंत्र- ॐ कृष्ण कृष्ण महाकृष्ण सर्वज्ञ त्वं प्रसीद मे। रमारमण विद्येश विद्यामाशु प्रयच्छ मे॥

7. द्वापर युग में गोपियों ने किया था इस मंत्र का जाप- कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरू ते नम:।।

8. इच्छा पूर्ति मंत्र- 'गोकुल नाथाय नमः। 

9. समस्त बाधा दूर करने वाला मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री'। 

10. स्थिर लक्ष्मी प्राप्ति का मंत्र- लीलादंड गोपीजनसंसक्तदोर्दण्ड बालरूप मेघश्याम भगवन विष्णो स्वाहा।

 

- आरके. 


Rukmini Ashtami

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