Santoshi Mata Vrat: संतोषी माता व्रत की पूजा विधि और नियम

Santoshi Mata Vrat: सप्ताह के दिनों में से एक शुक्रवार का दिन काफी महत्वपूर्ण माना जाता है इसका कारण ये है कि एक तो यह ज्योतिष के अनुसार भाग्य के कारक शुक्र का दिन है। वहीं इस दिन की कारक देवी स्वयं माता लक्ष्मी है। इसके अलावा यह दिन मां दुर्गा, माता लक्ष्मी और माता संतोषी की पूजा के लिए भी विशेष माना गया है।

मान्यता है कि जो लोग 16 शुक्रवार संतोषी माता का व्रत विधि-विधान से करते हैं। देवी माता उनके जीवन में धन और सुख की वर्षा करती हैं। माता उनकी सभी समस्याओं को दूर करती है। माता संतोषी को धार्मिक मान्यताओं में भगवान गणेश की पुत्री माना गया है। माता संतोषी की पूजा जहां जीवन में संतोष का प्रवाह करती है वहीं यह भी माना जाता है कि इससे धन और वैवाहिक समस्याएं भी दूर होती है। ध्यान रहे कि संतोषी माता व्रत का करने के लिए कई नियम हैं, जिनका पालन करना चाहिए।

व्रत शुरू करने के नियम
संतोष माता के व्रत को शुक्ल पक्ष के पहले शुक्रवार से शुरू करना चाहिए। ज्ञात हो कि किसी भी स्थिति में यह व्रत पितृ पक्ष में शुरू न किया जाए।

संतोषी माता व्रत पूजा विधि
- शुक्रवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि के पश्चात पूजा में देवी मां का चित्र और कलश रखकर माता संतोषी की पूजा करनी चाहिए।

- संतोषी माता की पूजा में माता को गुड़, चना, कमल, पुष्प, दूर्वा, अक्षत और नारियल का भोग लगाना चाहिए।

- इस दिन संतोषी माता आरती करने के साथ ही प्रसाद भी बांटना चाहिए। वहीं शाम को पुन: आरती करने के बाद व्रत का समापन चाहिए।

- इस दिन भोजन दान करने के साथ ही जरूरतमंद लोगों की मदद भी करनी चाहिए।

संतोषी माता के व्रत में नियमों का पालन करें
- ध्यान रहे कि संतोषी माता का व्रत करना ही काफी नहीं है। इस व्रत के पूर्ण होने पर ध्यान करना चाहिए अन्यता व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता है।

- संतोषी माता के व्रत के दौरान कभी कुछ भी खट्टा नहीं खाना चाहिए।

- संतोषी माता का व्रत करने वाले जातक को पूजा के बाद गुड़ और चने का प्रसाद खाना चाहिए।

सन्तोषी माता आरती (Santoshi Mata Aarti)-
जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ।
अपने सेवक जन की,
सुख सम्पति दाता ॥

जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ॥

सुन्दर चीर सुनहरी,
मां धारण कीन्हो ।
हीरा पन्ना दमके,
तन श्रृंगार लीन्हो ॥

जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ॥

गेरू लाल छटा छबि,
बदन कमल सोहे ।
मंद हंसत करुणामयी,
त्रिभुवन जन मोहे ॥

जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ॥

स्वर्ण सिंहासन बैठी,
चंवर दुरे प्यारे ।
धूप, दीप, मधु, मेवा,
भोज धरे न्यारे ॥

जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ॥

गुड़ अरु चना परम प्रिय,
तामें संतोष कियो ।
संतोषी कहलाई,
भक्तन वैभव दियो ॥

जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ॥

शुक्रवार प्रिय मानत,
आज दिवस सोही ।
भक्त मंडली छाई,
कथा सुनत मोही ॥

जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ॥

मंदिर जग मग ज्योति,
मंगल ध्वनि छाई ।
विनय करें हम सेवक,
चरनन सिर नाई ॥

जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ॥

भक्ति भावमय पूजा,
अंगीकृत कीजै ।
जो मन बसे हमारे,
इच्छित फल दीजै ॥

जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ॥

दुखी दारिद्री रोगी,
संकट मुक्त किए ।
बहु धन धान्य भरे घर,
सुख सौभाग्य दिए ॥

जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ॥

ध्यान धरे जो तेरा,
वांछित फल पायो ।
पूजा कथा श्रवण कर,
घर आनन्द आयो ॥

जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ॥

चरण गहे की लज्जा,
रखियो जगदम्बे ।
संकट तू ही निवारे,
दयामयी अम्बे ॥

जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ॥

सन्तोषी माता की आरती,
जो कोई जन गावे ।
रिद्धि सिद्धि सुख सम्पति,
जी भर के पावे ॥

जय सन्तोषी माता,
मैया जय सन्तोषी माता ।
अपने सेवक जन की,
सुख सम्पति दाता ॥



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