पिता का श्राद्ध सम्पन्न होते ही राजकुमार भरत ने सबको सूचना दे दी कि वे राम को वापस लाने के लिए वन जाएंगे।
राजकुटुम्ब से जुड़े लोग जो भरत को जानते थे, उन्हें इसकी आशा थी। वे जानते थे कि भरत कभी भी राज्य स्वीकार नहीं करेंगे। पर वे सारे लोग यह भी जानते थे कि राम भी चौदह वर्ष से पूर्व वापस लौट कर नहीं आएंगे।
परिवार की स्त्रियां भी जानती थीं कि न भरत राज्य स्वीकार करेंगे न राम! यह पारिवारिक सम्बन्धों में समर्पण की पराकाष्ठा थी। ऐसे में कोई भी कुछ कह नहीं पा रहा था, क्योंकि सभी जानते थे कि इस स्थिति में राह केवल राम और भरत ही निकाल सकते थे।
अपनी अपनी मर्यादा पर अडिग दो राजकुमारों के मध्य छिड़ा यह स्नेह का द्वंद समग्र संसार के लिए आदर्श बनने वाला था।
अयोध्या के राजसिंहासन के आगे भूमि पर बैठे भरत ने भरे दरबार में कहा, 'मैं भइया को वापस बुलाने जाऊंगा। असंख्य युगों की यात्रा के बाद सभ्यता को रामराज्य मिलने का सौभाग्य बना है, इसमें यदि हमारे कारण विलम्ब हो तो हम समूची सभ्यता के अपराधी होंगे। हमें भइया को वापस लाना ही होगा...' भरत ने एक बार चारों ओर दृष्टि फेरी और माण्डवी की ओर देख कर रुक गए। कहा, 'संसार के सबसे बड़े पाप के बोझ से दबा मैं अयोध्या का शापित राजकुमार किसी और से क्या ही निवेदन करूं, पर आप मेरे साथ चलिए राजकुमारी! माथे पर लगा दाग तो जीवन भर दुख देता रहेगा, पर यदि भइया भाभी के चरणों में गिर कर उन्हें लौटा लाए तो, शायद सिर उठा कर जी सकें।'
ये भी पढ़ें: Mahashivratri 2023 Tips: महाशिवरात्रि पर जरूर कर लें ये काम बनेंगे लव मैरिज के योग, जल्द ही विवाह के लिए मान जाएंगे आपके पैरेंट्स
ये भी पढ़ें: Mahashivratri 2023: महाशिवरात्रि पर अपनी राशि के अनुसार इन चीजों से करें शिवजी की पूजा, जल्द प्रसन्न होंगे भोलेनाथ
माण्डवी कुछ बोलतीं इसके पूर्व ही समस्त राजकुटुम्ब बोल पड़ा, 'हम आपके साथ चलेंगे युवराज! यह केवल आपका तप नहीं, राम को पाने की यात्रा समूची अयोध्या को करनी होगी।' भरत ने सुना, सबसे तेज स्वर उनकी माता कैकई का था।
कैकई आगे भी बोलती रहीं, 'मैं अपने पति और दोनों बेटों की ही नहीं, इस देश इस सभ्यता की अपराधी हूं। पर क्या राम की इस अभागन मां को प्रायश्चित का भी अवसर नहीं मिलेगा? मैं जानती हूं कि मैंने पति के साथ ही अपना पुत्र भी खो दिया है, पर मुझे अपने राम से अब भी आशा है। वो मेरे दुखों का निवारण अवश्य करेगा।' कुछ पल ठहर कर कैकई ने एक बार भरत की ओर देखा और शीश झुका कर कहा, 'हमें साथ ले चलिए युवराज! मुझे प्रायश्चित का एक अवसर अवश्य मिले।'
भरत कुछ न बोले। सिर झुकाए बैठे भरत की आंखों में केवल अश्रु थे। उधर उर्मिला और श्रुतिकीर्ति ने कैकई के पास पहुंच कर जैसे उन्हें थाम लिया था।
ये भी पढ़ें: महाशिवरात्रि पर क्या है चार पहर पूजा का विधान, हर पहर की पूजा का मिलता है अलग फल
ये भी पढ़ें: Mahashivratri 2023 : महाशिवरात्रि पर जरूर करें ये एक काम, बन जाएगा हर काम, मिलेगी सफलता और खुशियां
उस दिन संध्या होते-होते समूचे नगर को ज्ञात हो गया कि भरत राम को वापस लाने वन को जाने वाले हैं। आमजन के विचार बदलते देर नहीं लगती। सज्जनता में बहुत शक्ति होती है, उसका एक निर्णय समूचे समाज की सोच बदल देता है। जो जन कल तक भरत को रामद्रोही समझ कर उनकी आलोचना कर रहे थे, अब वे भी भरत की जयजयकार करते राजमहल के द्वार पर खड़े होकर साथ चलने की आज्ञा मांग रहे थे।
भरत बाहर आए! प्रजा के सामने शीश झुकाया और कहा, 'चलिए! मेरे दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने को आतुर जन, आप मेरे लिए देवतुल्य हैं। चलिए, हम अपने प्रिय को वापस बुला कर उन्हें उनका अधिकार सौंप दें। यही मेरे इस शापित जीवन की एकमात्र उपलब्धि होगी...'
प्रजा जयजयकार कर उठी। यह स्नेह की विजय थी।
- क्रमश:
from Patrika : India's Leading Hindi News Portal https://ift.tt/EqRZU6F
EmoticonEmoticon