हनुमान जन्मोत्सवः जयंती का अर्थ है किसी घटना के पहली बार घटित होने का दिन या वर्षगांठ और जन्मोत्सव का अर्थ है जन्म के समय होने वाला उत्सव या जन्म दिवस की वर्षगांठ। लेकिन जयंती प्रायः किसी मृत व्यक्ति के जन्म दिवस को बताने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और जन्मोत्सव किसी जीवित व्यक्ति और देवी-देवताओं, ईश्वरीय अवतार के लिए प्रयोग किया जाता है। क्योंकि देवता अमर हैं।
पंचांगों में कहीं चैत्र पूर्णिमा के लिए कहीं हनुमान जयंती लिखा है, और कहीं हनुमान जन्मोत्सव। लेकिन कई संतों का मानना है कि हनुमानजी के जन्मदिन को जन्मोत्सव कहना ठीक रहेगा। क्योंकि हनुमानजी कलियुग के जाग्रत देवता हैं और वो अमर हैं।
आठ चीरंजीवी में से एकः हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार मर्त्यलोक (पृथ्वी) पर जिसने भी जन्म लिया है, उसकी मृत्यु तय हो, भले कुछ जल्दी हो जाय या देरी से। लेकिन आठ चीरंजीवी ऐसे हैं जो अमर हैं। हनुमानजी इनमें से एक हैं।
मान्यता है कि भगवान श्रीराम जब मर्त्यलोक छोड़ने लगे तो इन्हें अमर होने का वरदान दिया और अपने भक्त हनुमानजी को कलियुग में धर्म रक्षक के रूप में इस कलियुग के अंत तक रहने का आदेश दिया। इसके बाद गंधमादन पर्वत पर अपना निवास बना लिया।
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ये हैं अन्य चीरंजीवीः हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हनुमानजी के साथ सात अन्य लोग अमर हैं। राजा बलि, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, महर्षि वेदव्यास, ऋषि मार्कंडेय, विभीषण, परशुराम।
हनुमानजी को क्यों लगाते हैं सिंदूरः एक कथा के अनुसार एक बार हनुमानजी ने माता सीता को सिंदूर लगाते देखा तो हनुमानजी ने उसका कारण पूछा। इस पर माता सीता ने बताया कि वे भगवान श्रीराम की लंबी उम्र की कामना से मांग में सिंदूर लगाती हैं और इससे पति की उम्र लंबी होती है।
इतना सुनने के बाद श्रीराम भक्त हनुमान ने कहा कि यदि मांग में सिंदूर लगाने से स्वामी की आयु लंबी होती है तो मैं पूरे शरीर में ही सिंदूर लगाऊंगा। इसके बाद से वो पूरे शरीर में ही सिंदूर लगाने लगे।
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