Varuthini Ekadashi Vrat Katha: वरुथिनी एकादशी व्रत कथा भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि वैशाख कृष्ण एकादशी (vaishakh krishn ekadashi) का नाम वरुथिनी एकादशी है। यह एकादशी सौभाग्य प्रदान करने वाली है, सब पापों को नष्ट करने वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली है।
भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि प्राचीनकाल में मांधाता नाम के राजा राज्य करते थे। वह अत्यंत दानशील और तपस्वी थे। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी जंगली भालू आया और राजा मांधाता का पैर चबाने लगा। कुछ देर बाद भालू राजा को घसीटकर जंगल में ले गया, तब राजा घबराया। लेकिन बिना क्रोध किए तपस्वी धर्म निभाते हुए उसने भगवान विष्णु को पुकारा। इस पर भगवान प्रकट हुए और राजा की रक्षा की। लेकिन भालू के पैर चबा लेने की वजह से वह दुखी थे।
इस पर श्रीहरि ने कहा कि तुम मथुरा जाओ और वहां वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो, उसके प्रभाव से तुम्हारा अंग सही हो जाओगे। भालू ने तुम्हें जो काटा वह तुम्हारे पूर्व जन्मों के अपराध का फल था। भगवान की आज्ञा मानकर राजा ने वैसा ही किया, जिसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही सुंदर और पूर्ण अंग वाला हो गया। बाद में राजा मांधाता स्वर्ग को गया।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जो व्यक्ति भय से पीड़ित है। उसे वरुथिनी एकादशी का व्रत रखना चाहिए। इसके प्रभाव सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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