सिंह संक्रांति कब है?
इस बार सूर्य ग्रह 17 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 23 मिनट पर अपनी ही स्वराशि सिंह में गोचर कर रहे हैं।
सिंह संक्रांति वैसे भादो के माह में होती है लेकिन इस बार अधिकमास होने के कारण यह श्रावण माह में हो रही है।
इस बार की सिंह संक्रांति कैसी है?
सूर्य की सिंह संक्रांति का नाम मंद है।
सूर्य देव का वाहन सिंह, वस्त्र श्वेत, दृष्टि ईशान, गमन दक्षिण और भक्ष्य पदार्थ अन्न है।
सिंह संक्रांति पर सूर्य देव श्वेत वस्त्रों में शेर पर सवार होकर दक्षिण की ओर गमन करेंगे।
घी संक्रांति :-
भाद्रपद (भादो) माह की सिंह संक्रांति को उत्तराखंड में घी संक्रांति या ओल्गी संक्रांति कहते हैं।
घी संक्रांति या घिया संक्रांद या घी-त्यार कहते हैं। गढ़वाल में घिया संक्रांद और कुमांऊ में घी-त्यार कहते हैं।
वस्तुतः यह कृषि और पशुपालन से जुड़ा हुआ एक लोक पर्व है।
सिंह संक्रांति का महत्व :
- यही कारण है कि नवजात बच्चों के सिर और पांव के तलुवों में घी लगाकर जीभ पर भी थोड़ा सा घी रखा जाता है।
- चरक संहिता में कहा गया है कि घी- स्मरण शक्ति, बुद्धि, ऊर्जा, बलवीर्य, ओज बढ़ाता है।
- घी वसावर्धक है। यह वात, पित्त, बुखार और विषैले पदार्थों का नाशक है।
- सिंह संक्रांति के दिन कई तरह के पकवान बनाकर खाते हैं जिसमें दाल की भरवां रोटियां, खीर और गुंडला या गाबा प्रमुख हैं।
- इस दिन दाल की भरवां रोटियों के साथ घी का सेवन किया जाता है। इस रोटी को बेडु की रोटी कहा जाता है।
- सिंह संक्रांति के दिन स्नान और दान करने का विशेष महत्व है।
- इस दिन सूर्य मंत्र के साथ सूर्यदेव की विशेष पूजा जरूर करना चाहिए।
- कुंडली में सूर्यदोष है, तो उसे सूर्यदेव से जुड़ी वस्तुओं का खासकर दान करना चाहिए। जैसे कि तांबा, गुड़ आदि।
- इस पावन पर्व के दिन भगवान विष्णु का पूजन होता है तथा श्री हरि के अन्य स्वरुप भगवान नरसिम्हा की पूजा का भी विशेष विधान बताया गया है।
पौराणिक कथा:-
पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है जो इस दिन घी नहीं खायेगा उसे अगले जन्म में घोंघे के रूप में जन्म लेना होगा।
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