उल्लेखनीय है कि एवरेस्ट से तीन गुना बड़ा सिंगवाला धूमकेतु तेजी से धरती की ओर बढ़ रहा है। कुछ वैज्ञानिकों ने इसकी तुलना स्टार वार्स में मिलेनियम फाल्कन अंतरिक्ष यान से भी की है। अगले साल, 2024 में 21 अप्रैल को यह पृथ्वी के सबसे नजदीक होगा। तब इसे लोग देख सकेंगे। वैज्ञानिकों ने इसे धूमकेतु को 12पी/पोंस-ब्रूक्स नाम दिया गया है और इसे क्रायोवोल्केनिक धूमकेतु के रूप में क्लासीफाइड किया है। इसे ठंडे ज्वालामुखी धूमकेतु के तौर पर भी जाना जाता है। इसका साइज डायमीटर 30 किलोमीटर है।.... लेकिन हम इसकी बात नहीं कर रहे हैं। जिस उल्कापिंड की बात चल रही है, उसका नाम है बेनू (Bennu). यह उल्कापिंड हर छह साल में हमारी धरती के बगल से निकलता है, यदि गलती से भी यह धरती की ओर चला आए तो तबाही तय है। लेकिन NASA ने इससे बचने की तैयारी शुरू कर दी है। ऐसे एक नहीं कबी दर्जनभर से ज्यादा उल्कापिंड है।
नास्त्रेदमस : नास्त्रेदमस ने अपनी भविष्याणी की किताब में लिखा है कि 'एक मील व्यास का एक गोलाकार पर्वत अंतरिक्ष से गिरेगा और महान देशों को समुद्री पानी में डुबो देगा। यह घटना तब होगी, जब शांति को हटाकर युद्ध, महामारी और बाढ़ का दबदबा होगा। इस उल्का द्वारा कई प्राचीन अस्तित्व वाले महान राष्ट्र डूब जाएंगे।' (I-69) तबाही के बाद शांति होगी। इस शांति से पहले पूरी दुनिया में 72 घंटे का अंधेरा छा जाएगा। पहाड़ों पर बर्फ गिरेगी और कई देशों के युद्ध शुरू होते ही खत्म हो जाएंगे। ऐसा एक प्राकृतिक घटना के कारण होगा।
अच्युतानंद दास : आसमान में दो सूर्य निकलने का आभास होगा। दूसरा सूर्य आसमानी पिंड होगा, जो बंगाल की खाड़ी में गिरेगा और ओडिशा जलमग्न हो जाएगा। समुद्र का जलस्तर बढ़ जाएगा और जगन्नाथ मंदिर की 22वीं सीढी तक पानी आ जाएगा। तब भगवान के विग्रह को उनके भक्त छातियाबटा ले जाएंगे। धरती पर हो रहीं प्राकृतिक आपदाओं के कारण धरती पर 7 दिनों तक अंधेरा रहेगा। एक ओर प्राकृतिक आपदाएं होंगी तो दूसरी ओर होगा महायुद्ध। तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत शनि के कुंभ राशि में प्रवेश करने पर हो जाएगी। अमेरिका का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो जाएगा। शनि के मीन राशि में
करीब 500 वर्ष पूर्व हुए ओड़िसा के संत अच्युतानंद जी ने अपनी भविष्य मालिका की पुस्तक में लिखा है कि धरती की धुरी बदल जाएगी। भयानक बाढ़ के बाद भुखमरी और भूकंप का दौर चलेगा। शनि के पुन: कुंभ में आने से युद्ध के हालात बनेंगे। संत अच्युतानंद ने 2019 से 2028 के बीच युग परिवर्तन की स्थिति बन रही है। 17 जनवरी 2023 को शनि पुन: कुंभ में आएंगे तब कई देशों में आपसी तनाव के चलते युद्ध की शुरुआत होगी। 2023 में भुखमरी फैलेगी। शनि जब मीन राशि में जाएगा यानी 29 मार्च 2025 को तो तब तृतीय विश्व युद्ध की शुरुआत होगी।
क्या कहता है खगोल विज्ञान?
- उल्कापिंड यानी एस्टेरॉयड को किसी ग्रह या तारे का टूटा हुआ टुकड़ा माना जाता है। ये पत्थर या धातु के टूकड़े होते हैं जो एक छोटे पत्थर से लेकर एक मील बड़ी चट्टान तक और कभी-कभी तो एवरेस्ट के बराबर तक हो सकते हैं। आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका' कहते हैं।
- कहते हैं कि हमारे सौर मंडल में करीब 20 लाख एस्ट्रेरॉयड घूम रहे हैं। NASA के पास पृथ्वी के आसपास 140 मीटर या उससे बड़े करीब 90 प्रतिशत एस्टेरॉयड को ट्रैक की क्षमता है। अंतरिक्ष में भटक रहा सबसे बड़ा उल्का पिंड '2005 वाय-यू 55' है लेकिन फिलहाल खतरा एस्टेरॉयड एपोफिस से है।
- अमेरिका में खगोल भौतिकी के हारवर्ड-स्मिथसोनियन सेंटर के डॉ. अर्विंग शापिरो बताते हैं कि पृथ्वी को अतीत में कई बार इस तरह के पिंडों के साथ टक्कर झेलनी पड़ी है। वे कहते हैं, 'इस तरह का सबसे पिछला प्रलयंकारी पिंड साढ़े छह करोड़ साल पहले टकराया था। उसने न जाने कितने जीव-जंतुओं की प्रजातियों का पृथ्वी पर से अंत कर दिया। डायनासॉर इस टक्कर से लुप्त होने वाली सबसे प्रसिद्ध प्रजाति हैं। समस्या यह है कि हम नहीं जानते कि कब फिर ऐसा ही हो सकता है।' वह लघु ग्रह सन फ्रांसिस्को की खाड़ी जितना बड़ा था और आज के मेक्सिको में गिरा था। इस टक्कर से जो विस्फोट हुआ, वह दस करोड़ मेगाटन टीएनटी के बराबर था। पृथ्वी पर वर्षों तक अंधेरा छाया रहा।
- कई बड़े वैज्ञानिकों को आशंका है कि एपोफिस या एक्स नाम का ग्रह धरती के काफी पास से गुजरेगा और अगर इस दौरान इसकी पृथ्वी से टक्कर हो गई तो पृथ्वी को कोई नहीं बचा सकता। हालांकि कुछ वैज्ञानिक ऐसी किसी भी आशंका से इनकार करते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ब्रह्मांड में ऐसे हजारों ग्रह और उल्का पिंड हैं, जो कई बार धरती के नजदीक से गुजर चुके हैं।
- 1994 में एक ऐसी ही घटना घटी थी। पृथ्वी के बराबर के 10-12 उल्का पिंड बृहस्पति ग्रह से टकरा गए थे जहां का नजारा महाप्रलय से कम नहीं था। आज तक उस ग्रह पर उनकी आग और तबाही शांत नहीं हुई है।
- वैज्ञानिक मानते हैं कि यदि बृहस्पति ग्रह के साथ जो हुआ वह भविष्य में कभी पृथ्वी के साथ हुआ तो तबाही तय हैं, लेकिन यह सिर्फ आशंका है। आज वैज्ञानिकों के पास इतने तकनीकी साधन हैं कि इस तरह की किसी भी उल्का पिंड की मिसाइल द्वारा दिशा बदल दी जाएगी। इसके बावजूद फिर भी जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग तबाही का एक कारण बने हुए हैं।
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