Ramlala Pran Pratishtha: क्या पौष मास में देव प्रतिष्ठा शास्त्रसम्मत है?

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Ram temple in Ayodhya : इन दिनों समूचा देश रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा मुहूर्त को लेकर विमर्श में लगा हुआ है। देश के धर्माचार्यों व विद्वानों का एक वर्ग इस देव प्रतिष्ठा मुहूर्त को सही बता रहा है, वहीं दूसरा वर्ग इसे शास्त्रानुसार उचित व शुद्ध नहीं मान रहा है। अब इन दो मतों के मध्य देश का जनमानस असमंजस, संशय व ऊहापोह की स्थिति में है कि आखिर शास्त्रसम्मत सत्य क्या है?

 

यहां हम शास्त्र की मर्यादा व निर्देशानुसार विभिन्न मतों का विश्लेषण कर कुछ निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयास करेंगे जिससे जनमानस को एक शास्त्रोक्त निर्णय करने में सुविधा हो। हमारे सनातन धर्म में प्रत्येक कार्य को करने से पूर्व शुद्ध मुहूर्त निकालकर उस मुहूर्त में ही नियत कार्य करने का निर्देश है।

 

ज्योतिष शास्त्र अंतर्गत ऐसी मान्यता है कि यदि मुहूर्त पूर्णरूपेण शुद्ध हो तो वह अनेकानेक दोषों का शमन करने में सक्षम होता है। सामान्यत: लोकाचार में पौष मास में शुभ कार्य व देव प्रतिष्ठा नहीं करने का प्रचलन है किंतु क्या यह शास्त्रसम्मत है? यहां हम निम्न शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर इसका समाधान प्राप्त करने का प्रयास करेंगे।

 

मातृ भैरववाराहनारसिंह्त्रिविक्रमा:।

महिषासुरहन्त्री च स्थाप्या वै दक्षिणायने।।

 

-(वैखानस संहिता)

 

श्रावणे स्थापयेल्लिंगमाश्विने जगदम्बिकाम्।

मार्गशीर्षे हरिश्चैव सर्वान्पौषेऽपि केचन।।

 

-(मुहूर्तगणपति)

 

सर्वेषां पौषमाघौ द्वौ विबुधस्थाने शुभौ।

 

-(बृहस्पति)

 

यदि्दनं यस्य देवस्य तद्दिने तस्य संस्थिति:।

 

-(वशिष्ठ संहिता)

 

उपर्युक्त शास्त्र वचनों से सुस्पष्ट है कि मलमास, गुरु-शुक्रास्त में देवप्रतिष्ठा सर्वत्र वर्जित है लेकिन कुछ शास्त्र पौष मास में देवप्रतिष्ठा को शुभ मानते हैं। आचार्य बृहस्पति पौष मास में देवप्रतिष्ठा को राज्यप्रद मानते हैं किंतु शास्त्र के वचनानुसार

 

चैत्रे वा फाल्गुन वापि ज्येष्ठे वा माधवे तथा।

माघे वा सर्वदेवानां प्रतिष्ठा शुभदा भवेत।।

 

यस्य देवस्य यत्तिथिवार नक्षत्रादिकं तद्दिनेयदि।

तस्य प्रतिष्ठा मुहूर्तों भवेत्तदा अत्युत्तम:।।

 

अस्तु

 

'यस्य देवस्य यत्तिथिवार नक्षत्रादिकं तद्दिनेयदिशास्त्र',

एवं 'यदि्दनं यस्य देवस्य तद्दिने तस्य संस्थिति:।'

 

-(वशिष्ठ संहिता)

 

यहां सुस्पष्ट सिद्धांत व निर्देश हैं कि देवताओं की अपनी प्राकट्य तिथि विशेष शुभ होती है एवं जहां तक संभव हो देवप्रतिष्ठा उस देव की प्राकट्य तिथि के अनुसार करना अतिउत्तम होता है। जब रामचरितमानस में प्रभु श्रीराम के प्राकट्य के मुहूर्त का उल्लेख है-

 

नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।।

मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक विश्रामा।।

 

तब शास्त्र के इन सर्वमान्य सिद्धांतों के अनुसार रामनवमी वाले मुहूर्त को ही प्राथमिकता देना श्रेयस्कर रहता।

 

अधिकांश शास्त्र देवप्रतिष्ठा के लिए माघ, फाल्गुन, वैशाख, ज्येष्ठ एवं विकल्प के रूप में आश्विन मास को ग्रहण करते हैं। इसमें भी माघ मास में भगवान विष्णु की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं हो सकती किंतु भैरव, वराह, नृसिंह एवं देवी की प्राण-प्रतिष्ठा दक्षिणायन में भी की जा सकती है, अन्य देवों के लिए सूर्य का उत्तरायण होना आवश्यक है।

 

किरीतार्जुन का प्रसिद्ध वाक्य है- 'यद्यपि शुद्धं लोकविरुद्धं ना करणीयम, ना आचरणीयम।' जो स्पष्ट संकेत करता है कि चाहे सिद्धांत कितना भी शुद्ध क्यों न हो, यदि वह लोक मान्यताओं के विपरीत है तो उसका आचरण नहीं करना चाहिए। हिन्दू धर्म में लोक मान्यता अनुसार पौष मास, पंचक, होलिकाष्टक इत्यादि में शुभ कार्य वर्जित होते हैं।

 

यहां यह तथ्य भी विचारणीय है कि हमारी आध्यात्मिक परंपरा में सदैव ही भाव को प्राथमिकता देकर अग्रणी रखा गया है। तभी तो संत पलटूदास कहते हैं कि- 'लगन मुहूर्त झूठ सब और बिगाड़े काम। 'पलटू' शुभ दिन; शुभ घड़ी याद पड़े जब नाम' अर्थात जब प्रभु की याद आए और मन में भाव जगे तभी शुभ मुहूर्त होता है।

 

तुलसीदासजी भी मानस में इसी बात का उल्लेख करते हैं कि 'जोग लगन ग्रह वार तिथि सकल भए अनुकूल। 

चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल।। -(रामचरितमानस)
 

अर्थात् जब प्रभु श्रीराम का प्राकट्य हो तब सभी योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि अनुकूल हो जाते हैं। इस दृष्टि से तो किसी विशेष मुहूर्त की कोई आवश्यकता ही नहीं है। किंतु आगे मानसकार ने यह भी कहा है कि 'सियाराममय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी' इसका आशय है कि समस्त जगत को मैं सियाराममय जानकर प्रणाम करता हूं।

 

यदि साधक भावप्रवण नहीं है तो उसे शास्त्र की समस्त मर्यादाओं और सिद्धान्तों का पालन करना आवश्यक है और यदि साधक का आध्यात्मिक भाव प्रबल व शुद्ध है तो उसे किसी मुहूर्त की कोई आवश्यकता नहीं। फिर वह जिस क्षण, जिस घड़ी जो कार्य करे वह श्रेष्ठ और सफल हो जाता है।

 

अब रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले यजमानों एवं उस कार्य में संलग्न समस्त साधकों के भाव की विशुद्धता का निर्णय हम आप पाठकों पर छोड़ते हैं।

 

।।जय सियाराम।।

 

-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया

प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र

सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com
 

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