क्या आप जानते हैं चातुर्मास के समय क्यों योग निद्रा में चले जाते हैं भगवान विष्णु, नहीं होते मांगलिक कार्य


 
Chaturmas ki katha: हिंदू धर्म में चातुर्मास के दौरान कोई शुभ या मांगलिक कार्य नहीं होते। है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि नहीं किए जाते जिसका कारण भगवान विष्णु की योग निद्रा माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु योग निद्रा में क्यों लीन रहते हैं? यह केवल एक धार्मिक मान्यता नहीं, बल्कि एक गहरी और शिक्षाप्रद कहानी से जुड़ी है, जिसमें राजा बलि के दान और भगवान विष्णु के वामन अवतार की महत्वपूर्ण भूमिका है। आइए, जानते हैं इस अद्भुत कथा को, जो हमें दान, वचनबद्धता और ईश्वर की लीला का संदेश देती है।
 
राजा बलि का महादान और वामन अवतार
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्यराज बलि बहुत ही पराक्रमी और दानी थे। उन्होंने अपने तप और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। स्वर्ग पर उनका शासन देवताओं को चिंतित कर रहा था। तब भगवान विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना पर वामन अवतार धारण किया।
वामन अवतार में भगवान विष्णु एक छोटे कद के ब्राह्मण के रूप में राजा बलि के यज्ञ में पहुंचे। उन्होंने बलि से मात्र तीन पग भूमि दान में मांगी। राजा बलि, अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे, उन्होंने बिना सोचे-समझे यह दान स्वीकार कर लिया। जैसे ही राजा बलि ने दान देने का संकल्प लिया, भगवान वामन ने अपना विराट रूप धारण कर लिया। उन्होंने एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्ग को नाप लिया। अब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा था।
 
राजा बलि का समर्पण और भगवान विष्णु का वचन
भगवान वामन ने राजा बलि से पूछा कि वे तीसरा पग कहाँ रखें। राजा बलि ने अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए, बिना किसी संकोच के अपना सिर आगे कर दिया और कहा, "हे प्रभु! आप तीसरा पग मेरे सिर पर रखें।" भगवान वामन ने तीसरा पग राजा बलि के सिर पर रखा और उन्हें पाताल लोक भेज दिया। राजा बलि के इस समर्पण और दानवीरता से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा बलि को वरदान दिया कि वे उनके साथ पाताल लोक में निवास करेंगे।

चातुर्मास और भगवान विष्णु की योग निद्रा
इसी वचनबद्धता के कारण, भगवान विष्णु हर वर्ष चातुर्मास (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक) के दौरान पाताल लोक में राजा बलि के यहां निवास करते हैं और योग निद्रा में लीन रहते हैं। इस अवधि को देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक माना जाता है।

यह योग निद्रा केवल विश्राम नहीं, बल्कि एक गहरी आध्यात्मिक स्थिति है जिसमें भगवान सृष्टि के संचालन की सूक्ष्म प्रक्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। यह काल भारतीय संस्कृति में विशेष धार्मिक महत्व रखता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि नहीं किए जाते, क्योंकि माना जाता है कि भगवान विष्णु के शयन करने से इन कार्यों में उनकी कृपा प्राप्त नहीं होती।

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