हिन्दू-मुस्लिम के आस्था का केंद्र है यह चमत्कारी स्थान, यहां से खाली हाथ नहीं लौटता कोई

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है। यह शक्तिपीठ माता हिंगलाज मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर हिंगोल नदी और चंद्रकूप पहाड़ पर स्थित गुफा में स्थित है। यह मंदिर 2000 साल पूर्व ही विद्यमान हुआ था। वहीं इस मंदिर की खासियत है की माता के इस शक्तिपीठ की देखरेख मुस्लिम करते हैं। माता हिंगलाज की ख्याति सिर्फ कराची और पाकिस्तान ही नहीं अपितु पूरे भारत में है। भारत से तो हर वर्ष यहां लाखों की संख्या में श्रृद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं लेकिन सिंध-कराची से भी कई श्रृद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। हिंगलाज मंदिर में दाखिल होने के लिए पत्थर की सीढिय़ां चढ़नी पड़ती हैं। मां हिंगलाज मंदिर के इस शक्तिपीठ में देवी पार्वती का प्रतिरुप विराजमान हैं।

एक तरफ जहां हिंदूओं के लिए यह स्थान शक्तिपीठ कहलाता है वहीं मुसलमानों के लिए यह स्थान (नानी पीर) कहलाता है। जिस समय यह क्षे‍त्र भारत का हिस्सा था तब हिंगलाज तीर्थ हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ था इसी के साथ बलूचिस्तान के मुस्लिम भी हिंगला देवी की पूजा करते थे, वे भी मंदिर में माता को 'नानी'कहकर लाल कपड़ा, अगरबत्ती, इत्र-फुल और सिरनी चढ़ाते थे। हिंगलाज शक्तिपीठ हिंदू और मुस्लिम का संयुक्त महातीर्थ था।

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मन्नत पूरी करने के लिए भक्त चलते हैं माता का चुल

मंदिर के बाहर 10 फिट लंबा चुल यानी अंगारों का बाड़ा बनाया जाता है जिसे अंगारों से भर दिया जाता है। जिसपे मन्नतधारी चलकर मंदिर के अंदर प्रवेश करते हैं। एक बार यहां माता ने प्रकट होकर वरदान दिया कि जो भक्त मेरा चुल चलेगा उसकी हर मनोकामना पुरी होगी। लेकिन माता के चमत्कार से यहां अंगारों पर चलकर मन्नतधारियों के शरीर को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता है और आपकी मन्नत जरूर पुरी होती है। समय के साथ आजकल यह परंपरा बंद हो गई है।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार

सतयुग में जब देवी सती ने अपना शरीर अग्निकुंड में समर्पित कर दिया था, तो भगवान शिव ने सती के जले शरीर को लेकर तांडव किया और फिर भगवान विष्णु ने उन्हें शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के जले शरीर को टुकड़ों में विभाजित कर दिया था। माना जाता है कि सती के शरीर का पहला टुकड़ा यानि सिर का एक हिस्सा यहीं अघोर पर्वत पर गिरा था। जिसे हिंगलाज व हिंगुला भी कहा जाता है यह स्थान कोटारी शक्तिपीठ के तौर पर भी जाना जाता है। बाकी शरीर के टुकड़े हिंदुस्तान के विभिन्न हिस्सों में गिरे, जो बाद में शक्तिपीठ कहलाए। कहा जाता है कि हर रात इस स्थान पर सभी शक्तियां एक-साथ होकर रास रचाती हैं और दिन निकलते हिंगलाज माता के भीतर समा जाती हैं।

 

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गुफा में बसा है दिव्य मंदिर

ऊंची पहाड़ी पर बनी एक गुफा में माता का विग्रह रूप विराजमान है। पहाड़ की गुफा में माता हिंगलाज देवी का मंदिर है और इसका कोई दरवाजा नहीं है। मंदिर की परिक्रमा यात्री गुफा के एक रास्ते से होकर दूसरी ओर से निकलता है। मंदिर को लेकर माना जाता है कि माता हिंगलाज देवी यहां हर सुबह स्नान करने आती हैं। यहां माता सती कोटटरी रूप में और भगवान भोलेनाथ भीमलोचन भैरव रूप में विराजमान हैं। माता हिंगलाज मंदिर परिसर में श्री गणेश, कालिका माता की प्रतिमा के अलावा ब्रह्मकुंड और तीरकुंड आदि प्रसिद्ध तीर्थ हैं। इस आदि शक्ति की पूजा हिंदुओं द्वारा तो की ही जाती है इन्हें मुस्लिम भी काफी सम्मान देते हैं।



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