भगवान कृष्ण और युधिष्ठिर ने स्थापित किया था शिव मंदिर, होती है हर मनोकामना पूरी

नीली छतरी मंदिर एक प्राचीन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस प्राचिन मंदिर की स्थापना पांडवों के ज्येष्ठ भाई युधिष्ठिर द्वारा की कई थी। मंदिर को लेकर लोगों की मान्यता है की इस मंदिर में युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया था। बहुत प्राचीन मंदिर होने के कारण इसके इतिहास के बारे में कहीं कोई विशेष उल्लेख नहीं है। फिर भी इस मंदिर को पांडवकालीन मंदिर कहा जाता है। नीली छतरी एक गुंबद है जो कि नीली रंग का टाईलों से बना हुआ है। इसलिए इसे नीली छतरी मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है और सावन माह में यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। शिव भक्त यहां माथा टेकने आते हैं साथ ही मनोकामना पूरी के लिए लड्डू का चढ़ावा भी चढ़ाते हैं।

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लड्डू का लगता है भोग

नीली छतरी की विशेषता इस मंदिर की सुंदरता को और बढ़ा देती है। नीली छतरी एक गुम्बद है जो कि नीले रंग के पत्थर से बना हुआ है। लोगों के अनुसार किसी समय में ये नीलम पत्थर से बना मंदिर था। रात के समय में चन्द्रमा की रोशनी जब नीले पत्थर पर पड़ती थी, तब इसके प्रकाश से आसपास का माहौल नीला हो जाता था। इसी कारण इस मंदिर का नाम नीली छतरी मंदिर पड़ गया था। इस मंदिर में गुंबद के नीचे भगवान शिव की पूजा की जाती है और वहीं ऊपर मंदिर के अलग देवताओं को पूजा जाता है। मंदिर को लेकर माना जाता है की व्यक्ति की मनोकामना पूर्ति के लिए उसे शिव जी को यहां पांच लडडू का प्रसाद चढ़ाना होता है। भोलेनाथ को इस चीज़ का प्रसाद चढ़ाने से उक्त व्यक्ति की सारी इच्छाएं व मुरादें पूरी हो जाती है।

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सावन में रहता है विशेष महत्व

मंदिर में भगवान शिव के दर्शन के लिए सबसे अच्छा समय सावन व शिवरात्रि का होता है। सावन के पावन माह में मंदिर बहुत ही अच्छे से सजाया जाता है व यहां भक्तों की भीड़ से मंदिर व आसपास का माहौल शिवमय हो जाता है वहीं भक्तों द्वारा भोले के जयकारें मन को प्रसन्न कर देते हैं। सावन माह में यह मंदिर भक्ति गतिविधियों से भरा होता है। सोमवार के दिन विशेष रूप से भगवान शिव के दर्शन के लिए भक्त आते क्योंकि सोमवार का दिन भगवान शिव का दिन होता है।

दिल्ली में यहां स्थित है मंदिर

यह मंदिर युमना बाजार क्षेत्र, सलीमघढ किले, रिंग रोड़, कश्मीरी गेट, नई दिल्ली में स्थित है। मंदिर के एक तरफ महात्मा गांधी रोड़ है जहां से मंदिर के ऊपर बने गुंबद में जाया जा सकता है और दूसरी तरफ सड़क है जिसको लोहे वाले पूल की सड़क के नाम से जाना जाता है जो पुरानी दिल्ली से गांधी नगर जाती है। इस सड़क पर मंदिर का मुख्य द्वार है।



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