23 जुलाई सोमवार यानी आज से चातुर्मास शुरु हो गया है। चातुर्मास की चार महीने की अवधि आषाढ़ शुक्ल की एकादशी से शुरु होकर कार्तिक शुक्ल की एकादशी पर समाप्त होती है। चतुर्मास के चार महीने भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते है। इन चार माहों में कोई भी शुभ काम नहीं होता है। यह समय भक्तों, साधु-संतों व सभी धर्मिक लोगों के लिए बहुत जरुरी व महत्वपूर्ण होता है। व्रत, उपवास के लिए चातुर्मास बहुत अच्छा होता हैं। इस अवधि में सभी महात्मा व संत ध्यान-साधना में लगे रहते हैं। 4 माह को व्रतों का माह कहा जाता है। वो इसलिए क्योंकि इन 4 माह में हमारी पाचनशक्ति कमजोर पड़ जाती है और वात-पित्त बढ़ जाता हैं। इस श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह के समय भोजन और जल में बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है। इसी कारण से इन माहिनों में व्रत करने की सलाह दी जाती है।
पुराणों में चातुर्मास के विषय में बताया गया है कि इस माह की एकादशी के दिन से भगवान श्री विष्णु चार मास के समय पाताल लोक में निवास करते है। उक्त 4 माह में विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माना जाता है। चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु की आराधना कि जाती है। इसके अलावा उपवास और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया जाना शुभ फल प्रदान करने वाला होता है। यह विष्णु भगवान् का व्रत है अतः ‘नमो- नारायण’ या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र’ के जप करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
इस समय अवधि में इन चीज़ों का सेवन होता है निषेध
चातुर्मास के दौरान कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। इस दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है। उठने के बाद अच्छे से स्नान करना और अधिकतर समय मौन रहना चाहिए। दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए। इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग कर देना चाहिए।
इस अवधि के दौरान सत्य का आचरण करते हुए दूसरों को दु:ख देने वाले शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। धार्मिक यात्राओं में भी केवल ब्रज यात्रा की जा सकती है। ब्रज के विषय में यह मान्यता है, कि इन चार मासों में सभी देव एकत्रित होकर तीर्थ ब्रज में निवास करते है। देव उठनी ग्यारस पर चातुर्मास का समापन हो जाता है और इसी के साथ चातुर्मास भी समाप्त हो जाता है।
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