ये है जगन्नाथ मंदिर का इतिहास कुछ इस तरह हुआ था इस अद्भभुत मंदिर का निर्माण

ओडिशा राज्य के शहर पुरी में श्री जगन्नाथ मंदिर हिन्दूओं का प्रसिद्ध मंदिर है, यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। पुरी नगर श्री कृष्ण यानी जगन्नाथपुरी की पावन नगरी कहलाती है। वैष्णव सम्प्रदाय का यह मंदिर हिंदुओं की चार धाम यात्रा में गीना जाता है।जगन्नाथ मंदिर का हर साल निकलने वाली रथ यात्रा उत्सव संसार में बहुप्रसिद्ध है। पुरी के इस मंदिर में तीन मुख्य देवता विराजमान हैं। भगवान जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र व उनकी बहन सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुंदर आकर्षक रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं।

 

 

JAGANNATH

इस तरह हुई मंदिर का स्‍थापना

पुरी का जगन्नाथ मन्दिर तो धार्मिक सहिष्णुता और समन्वय का अद्भुत उदाहरण है। यह मंदिर भारत के सबसे बड़े स्मारक स्थलों में से एक माना जाता है।कलिंगशैली से बने इस मंदिर में स्थाप्तय कला और शिल्प आश्चर्यजनक प्रयोगों से भरी खुबसुरती की मिसाल है। श्री जगन्नाथ का मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है। मंदिर के शिखर पर भगवान विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र है जो शहर के किसी भी कोनें से देखने पर मध्य में ही नजर आता है। अष्टधातु से निर्मित यह चक्र नीलचक्र भी कहा जाता है। मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फीट ऊंचे पत्‍थर के चबूतरे पर खड़ा है। इसके अंदर बने आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं। मंदिर का यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली है। इससे लगे घेरदार मंदिर की पिरामिडाकार छत और लगे हुए मण्डप, अट्टालिकारूपी मुख्य मंदिर के निकट होते हुए ऊंचे होते गए। मंदिर की मुख्य मढ़ी यानि भवन एक 20 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है और दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य सोलह किनारों वाला स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है। इसका द्वार दो सिंहों द्वारा रक्षित है।

JAGANNATH

यह है मंदिर का इतिहास और इस तरह हुआ निर्माण

गंग वंश में मिले ताम्र पत्रों के मुताबिक वर्तमान मंदिर के निर्माणकार्य को कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने शुरु करवाया था। मंदिर के जगमोहन और विमान भाग इनके शासन काल 1078-1148 के दौरान बने थे। इसके बाद ओडिशा राज्य के शासक अनंग भीम ने सन 1197 में इस मंदिर को वर्तमान रुप दिया थी। मंदिर के निर्माण के बाद इसमें सन 1558 तक पूजा अर्चना होती रही, और अचानक इसी वर्ष अफगान जनरल काला पहाड़ ने ओडिशा पर हमला किया और मूर्तियां तथा मंदिर के ऊपर हमले के बाद पूजा बंद करा दी गई। विग्रहों को चिलिका झील में स्थित एक द्वीप में गुप्‍त रूप से रखा गया। इसके बाद रामचंद्र देब के खुर्दा में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया और उनके स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के बाद मंदिर और इसकी मूर्तियों की पुन:स्‍थापना हुई। मंदिर 400,000 वर्ग फुट में फैला है और चार दीवारी से घिरा हुआ है।



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