हिमाचल देवी का रहस्यमयी मंदिर, जहां पुरोहित माता के कोप से नहीं करते दर्शन

हिमाचल प्रदेश एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है यहां देवी-देवताओं में गहरी आस्था रखने वाले लाखों श्रद्धालू मंदिरों में शीश नमाने आते हैं। हिमाचल प्रदेश में एक रहस्मयी हत्यादेवी का मंदिर हिमाचल के मंडी में स्थित है। इस जिले को पहले सुकेत नाम से जाना जाता था। मनोरम पहाड़ों के बीच बसे छोटे से गांव पागंणा में ही महामाया देवी कोट का मंदिर है। इस मंदिर को ऐसे तो महामाया मंदिर के नाम से जाना जाता है। पुरोहित की एक गलती से यहां हत्यादेवी बन गई थी राजकुमारी। हिमाचल में यह रहस्यमयी मंदिर साल में सिर्फ एक बार ही खुलता है हिमालय की गोद में बसे इस मंदिर का यह रहस्यमयी कक्ष साल में सिर्फ एक दिन के लिए ही खुलता है। यहां राजकुमारी के साथ कुछ ऐसा हुआ था कि वह हत्यादेवी बन गई थी। हत्यादेवी की एक गांव पर असीम कृपा है जबकि एक गांव के लोग यहां जाने से भी डरते हैं। आइए जानते हैं मंदिर का रहस्य

 

 

 

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ये है मंदिर की रहस्यमयी कथा

सुकेत रियासत की कमान राजा रामसेन के पास थी। राजा की बेटी चंद्रावती थी जो की वहां की राजकुमारी थी। राजकुमारी बचपन से ही शिव पार्वती की भक्त थी। एक बार सर्दी के मौसम में राजकुमारी अपने महल में सहेलियों के साथ खेल रही थी। खेल-खेल में राजकुमारी की एक सहेली ने पुरूष रूप धारण कर लिया और अचानक वहां से गुजर रहे राज पुरोहित ने उन्हें देख लिया। उन्हें लगा की राजकुमारी चंद्रावती किसी अज्ञात युवक के साथ खेल रही है। वे तुरंत राजा के पास गए और उन्हें पूरी बात बता दी, जिससे राजा क्रोधित हो गए। लोकलाज की चिंता से राजा नें राजकुमारी चंद्रावती को शीतकालीन राजधानी पांगणा भेज दिया। चंद्रावती ने खुद को पवित्र साबित करने के लिए रती नाम का विषैला बीज एक शिला पर पीसकर खा लिया जिससे उसकी मौत हो गई। कहा जाता है की यह शिला आज भी पांगणा में यथास्थिती मौजूद है।

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राजकुमारी कैसे बनी हत्यादेवी

राजकुमारी के प्राण त्यागने के बाद देवी चद्रावंती ने उसी रात अपने पिता राजा रामसेन को स्वप्न दिया और उन्हें पूरी कहानी सुनाई। उसी समय देवी चंद्रावती ने अपने पिता से कहा कि मेरे मृत शरीर को महामाया देवी कोट मंदिर पांगणा के परिसर में दबाया जाए। इसे छह माह बाद दोबारा से जमीन से बाहर निकालना। अगर मैं पवित्र हूं तो मेरा शरीर उस समय भी पूरी तरह से यथावत रहेगा और यदि पवित्र नहीं तो यह पूरी तरह से गल कर सड़ जाएगा। राजा ने अगली सुबह राज पुरोहित सहित रियासत के ज्योतिषियों को बुलाया और अपने सपने के बारे में बताया। तभी ज्योतिषियों के परामर्श पर राजा तुरंत पांगणा के लिए रवाना हुए। यहां पहुंचने पर उन्हें पता चला कि चंद्रावती ने आत्महत्या कर ली है। इसके बाद राजा ने चंद्रावती के कहे अनुसार उनके शरीर को महामाया मंदिर के परिसर में ही दबा दिया।

6 माह के बाद राजा ने वहीं पहुंचकर वह जमीन खोदी और देखा की राजकुमारी का शरीर पूरी तरह से सु‌रक्षित था। इससे सिद्ध हो गया कि चंद्रावती पवित्र थी और पुरोहित की बात गलत थी। इसी को लेकर राजा को अपने किए का पछतावा था और राजकुमारी चंद्रावती की इच्छा के अनुसार उनके शव को पांगणा के समीप चंदपुर स्‍थान पर अंतिम संस्कार किया गया। इसी स्‍थान पर शिव पार्वती का मंदिर भी बनाकर शिवलिंग की स्‍थापना की गई जिसे आज दक्षिणेश्वर महादेव के नाम से जाता जाता है।

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आगे जानें पुरोहित को क्या सजा मिली

वहीं, राजा रामसेन उन्माद से पीड़ित हो गए और उनकी इससे मौत हो गई। मगर इससे पहले उन्होंने झूठी शिकायत करने वाले पुरोहित को सजा के तौर पर राजधानी से बाहर निकालकर चुराग नामक स्‍थान पर भेज दिया जहां पर पानी से लेकर हर वस्तु का अभाव था। उनके वशंज आज इस क्षेत्र में लठूण कहे जाते हैं। कहते हैं आज तक पुरोहित के वशंज माता के कोप के डर से महामाया देवी कोट मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाते। कहीं देवी चंद्रावती उनके पूर्वजों द्वारा किए गए कृत्य की सजा उन्हें न दें।
उसी समय से आज तक दशकों से महामाया देवी कोट मंदिर पांगणा के कलात्‍मक छह मंजिला भवन के भूतल भाग में वामकक्ष यानि बाईं तरफ बने मंदिर में देवी चंद्रावती की हत्यादेवी के रूप में पूजा की जाती है। हालांकि यह मंदिर साल भर बंद ही रहता है और विशेष उपलक्ष्य में ही इसे खोला जाता है। मगर आज भी सुकेत राजवंश सहित इस गांव के लोगों पर देवी की अपार कृपा है।



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