रोहिणी व्रत उद्यापन विधि- 28 अक्टूबर 2018, इस व्रत को करने से हो जाती आत्मशुद्धि

रोहिणी व्रत को आत्मशुद्धि का सबसे बड़ा उपाय माना जाता हैं ऐसी मान्यता हैं कि इस दिन व्रत रखने से आत्मा के सभी विकारों का नाश हो जाता है । इस रोहिणी व्रत को जैन धर्म में सबसे अधिक माना जाता हैं । यह एक साधारण व्रत होने के बाद भी इसे त्यौहार के रूप में मनाते है । जाने रोहिणी व्रत की कथा एवं उद्यापन विधि और महत्व ।


जैन धर्म में ऐसी मान्यता हैं की कोई व्रत क्यों न रखा जाये वे सभी व्रत आत्‍मशुद्धि के सबसे अच्‍छे उपाय होते है । कहा जाता कि रोहिणी व्रत करना आत्‍मा के विकारों को दूर कर कर्म बंधन से छुटकारा दिलाने में सहायक होता हैं । इसलिए इस रोहिणी व्रत को जैन धर्म में बहुत महत्‍वपूर्ण स्‍थान दिया गया है ।


रोहिणी व्रत कथा
इस व्रत के बारे में कथा आति हैं कि प्राचीन समय में चंपापुरी नामक नगर में राजा माधवा अपनी रानी लक्ष्‍मीपति के साथ राज करते थे, उनके सात पुत्र एवं एक रोहिणी नाम की पुत्री थी । एक बार राजा ने निमित्‍तज्ञानी से पूछा, कि मेरी पुत्री का का विवाह किसे साथ होगा, तो उन्‍होंने कहा, की हस्तिनापुर के राजकुमार अशोक के साथ इस कन्या का विवाह होगा । कुछ ही समय में कन्‍या रोहिणी का विवाह राजकुमार अशोक के साथ संपन्‍न हो गया ।

 

एक दिन राजा ने रानी से नगर में आये मुनिराज के लिए आहार व्यवस्था करने को कहा, राजा की आज्ञा से रानी चली तो गई, परंतु किसी बात को लेकर क्रोधित थी और इसी स्थिति में रानी ने आहार पर आये मुनिराज को कडुवी तुम्‍बीका का आहार दे दिया, जिससे मुनिराज को अत्‍यंत वेदना हुई और तत्‍काल उन्‍होंने प्राण त्‍याग दिये ।

 

जब राजा को कारण पता चला, तो उन्‍होंने रानी को नगर में बाहर निकाल दिया और इस पाप से रानी के शरीर में कोढ़ भी हो गया । अत्‍यधिक वेदना व दुख को भोगते हुए रानी मर के नर्क में गई । वहाँ अनन्‍त दुखों को भोगने के बाद पशु योनि में उत्‍पन्न हुई ।

रोहिणी नक्षत्र-उद्यापन
अगले जनम में रोहिणी व्रत करने का आदेश एक मुनि ने दिया, और कहा की उस दिन चारों प्रकार के आहार का त्‍याग करें और श्री जिन चैत्‍यालय में जाकर धर्मध्‍यान सहित सोलह प्रहर व्‍यतीत करें अर्थात् सामायिक, स्‍वाध्याय, धर्मचर्चा, पूजा, अभिषेक आदि में समय बितावे और स्‍वशक्ति दान करें । इस प्रकार यह व्रत 5 वर्ष और 5 मास तक करने से आत्मा की शुद्धि हो जायेगी ।

 

इस जनम में रानी दुर्गंधा ने श्रद्धापूर्वक व्रत धारण किया और आयु के अंत में संयास सहित मरण कर प्रथम स्‍वर्ग में देवी हुई । जिस प्रकार रोहिणी व्रत के प्रभाव से स्‍वर्गादि सुख भोगकर ये मोक्ष को प्राप्‍त हुए । इसी प्रकार अन्‍य जीव भी श्रद्धासहित यह व्रत पालन करेंगे तो वे भी उत्‍तमोत्तम सुख पाएंगे । इस व्रत के उद्यापन के लिए छत्र, चमर, ध्‍वजा, पाटला आदि उपकरण मंदिर में चढ़ाएं, साधुजनों व सधर्मी तथा विद्यार्थियों को शास्‍त्र दें, वेष्‍टन दें, चारों प्रकार का दान दें और खर्च करने की शक्ति न हो तो दूना व्रत करें ।



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