दीपावली पर कुबेर की इस पूजा से बच्चें हो या बड़े, धन ऐश्वर्य ही नहीं, ये चमत्कारी चीजे भी मिलती हैं

राजाधिराज कुबेर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की धन-सम्पदा के स्वामी हैं, अगर इनकी कृपा किसी के ऊपर हो जाये तो फिर बड़े हो या बच्चे सभी का जीवन स्वर्गीय आनंद पाने के अधिकारी बन जाता हैं । श्री कुबेर देव के साथ देवताओं के भी धनाध्यक्ष हैं । संसार के गुप्त या प्रकट जितने भी वैभव हैं, उन सबके अधिष्ठाता देव कुबेर हैं । यक्ष, गुह्यक और किन्नरों के अधिपति कुबेर सभी नवनिधियों के भी स्वामी हैं । एक निधि भी अनन्त वैभव प्रदान करने वाली होती है किन्तु कुबेर नवनिधियों के स्वामी हैं ।

 

पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील और वर्चस् आदि नवनिधियों का स्वामी ब्रह्माजी ने ही कुबेर को बनाया था । पादकल्प में कुबेर विश्रवामुनि व इडविडा के पुत्र हुए । विश्रवा के पुत्र होने से ये ‘वैश्रवण कुबेर’ व माता के नाम पर ‘ऐडविड’ के नाम से जाने जाते हैं । इनकी दीर्घकालीन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने इन्हें लोकपाल का पद, अक्षयनिधियों का स्वामी, पुष्पकविमान व देवता का पद प्रदान किया । कुबेर ने अपने पिता विश्रवामुनि से कहा कि ब्रह्माजी ने मुझे सब कुछ प्रदान कर दिया परन्तु मेरे निवास के लिए कोई स्थान नहीं दिया है । इस पर इनके पिता ने दक्षिण समुद्रतट पर त्रिकूट पर्वत पर स्थित लंकानगरी कुबेर को प्रदान की जो सोने से निर्मित थी ।

 

ऐसे है कुबेर
ध्यान-मन्त्रों में कुबेर को पालकी पर या पुष्पकविमान पर विराजित दिखाया गया है । पीतवर्ण के कुबेर के अगल-बगल में समस्त निधियां विराजित रहती हैं । इनके एक हाथ में गदा तथा दूसरे हाथ में धन प्रदान करने की वरमुद्रा है । इनका शरीर स्थूल है । कुबेर की सभा में महालक्ष्मी के साथ शंख, पद्म आदि निधियां मूर्तिमान होकर रहती हैं, इसलिए धनतेरस व दीपावली के दिन लक्ष्मीपूजा के साथ कुबेर की पूजा की जाती है क्योंकि कुबेर की पूजा से मनुष्य का दु:ख-दारिद्रय दूर होता है और अनन्त ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ।


धनपति कुबेर अपने भक्तों को उदारता, सौम्यता, शान्ति व तृप्ति, अपार धन, ऐश्वर्य, मान सम्मान आदि गुण तो प्रदान करते ही हैं लेकिन कुबेर के नाम से व्रत करने वाले बच्चे हो या बड़े सभी को नवनिधियों की प्राप्ति के साथ आरोग्य प्राप्ति का वरदान देते हैं ।



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