रूप चौदस को इस चीज से मालिश कर स्नान करने वालों के नष्ट होते है पाप, इसी से श्रीकृष्ण भी हुये थे पाप मुक्त

छोटी दिवाली रूप चौदस पर इस से स्नान करने पर श्रीकृष्ण भी हुये थे पाप मुक्त
रूप चौदस कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी तिथि यानी की छोटी दिवाली को जाता है, और इसे नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है । ऐसी मान्यता हैं कि इस दिन मालिश के तेल में इस चीज को मिलाकर स्नान करने से अनेक पापों का नाश हो जाता हैं । इस चीज को तेल में मिलाकर भगवान श्रीकृष्ण ने भी मालिश कर स्नान किया था तब उन्हें भी नरकासुर वध के पाप से मुक्ति मिली थी ।


मां लक्ष्मी का साथ बना रहता हैं
रूप चौदस को बंगाल में माँ काली के जन्म दिन के रूप में काली चौदस के तौर पर मनाया जाता है । पाँच दिन तक मनाई जाने वाली दिवाली के त्यौहार में धन तेरस के बाद ही रूप चौदस मनाते है । इसके बाद दिवाली – लक्ष्मी पूजन फिर अगले दिन अन्न कूट, गोवर्धन पूजा तथा अंत में भाई दूज मनाये जाते है । इसे छोटी दीपावली भी कहते है । इस दिन स्नानादि के बाद यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित किया जाता है । संध्या के समय दीपक जलाये जाते है । तेरस, चौदस और अमावस्या तीनो दिन दीपक जलाने से यम यातना से मुक्ति मिलती है तथा लक्ष्मी जी का साथ बना रहता है ।

 

इस दिन तेल में इस चीज को मिलाकर करें स्नान
1- रूप चौदस का दिन यह अपने सौन्दर्य को निखारने का दिन माना जाता है । भगवान की भक्ति व पूजा के साथ स्वयं के शरीर की देखभाल भी बहुत जरुरी होती है । रूप चौदस का यह दिन स्वास्थ्य के साथ सुंदरता और रूप की आवश्यकता का सन्देश देता है ।


2- इस दिन सुबह जल्दी उठकर शरीर पर तेल की मालिश करने का विधान हैं, कहा जाता हैं कि रूप चौदस के दिन तेल में पीली हल्दी, गेहूं का आटा एवं बेसन का उबटन बनाकर पूरे शरीर इसकी मालिश करने के बाद स्नान करने से अनेक पापों का नाश हो जाता हैं एवं शरीर की सुसंदरता में भक्षी निखार आता हैं ।


3- शास्त्रों की कथानुसार जब भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था और वध के बाद रूप चौदस के दिन तेल में पीली हल्दी, गेहूं का आटा एवं बेसन मिलाकर मालिश कर स्नान किया था, जिससे नरकासुर के वध के पाप से वे मुक्त हो गये थे । तभी से इस प्रथा की शुरूआत हुई थी । इस दिन यह स्नान करने वालों को नरक से भी मुक्ति मिल जाती है, इसलिए इसे नरक चतुर्दशी भी कहते है ।

 

रूप चौदस के दिन श्री हनुमान जी की विशेष पूजा करने का भी विधान है, इसी दिन बचपन में हनुमान जी ने सूर्य देव को खाने की वस्तु समझ कर खा लिया था, जिस कारण चारों ओर अंधकार फैल गया, बाद में सूर्य देव को इंद्र देवता ने हनुमान जी के उदर से मुक्त करवाया था ।



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