यहां स्थापित है भगवान शिव का अंतिम ज्योतिर्लिंग, संतान प्राप्ति की इच्छा जल्द होती है पूरी

भगवान शिव के 12 शिवलिंगों को दिव्य ज्योतिर्लिंग का महत्व दिया जाता है। इस ज्योतिर्लिंगों का हिंदू धर्म व पुराणों में बहुत अधिक महत्व माना जाता हैं, पुराणों के अनुसार इन स्थानों पर भगवान शिव स्वयं विराजमार रहते हैं। सभी ज्योतिर्लिंग अपनी अलग विशेषताओं के कारण जाने जाते हैं। इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग। हिंदू धर्म के अनुसार घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग अंतिम ज्योतिर्लिंग माना जाता है। शिव जी का यह पावन धाम भी अपनी अलग विशेषता के कारण बहुत प्रसिद्ध है।

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भारत के इस राज्य में स्थित है अंतिम ज्योतिर्लिंग

महाराष्ट्र के दौलताबाद से लगभग 18 किलोमीटर दूर बेरूलठ गांव के पास स्थित घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग है। मंदिर को घृष्णेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। शिवमहापुराण में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का वर्णन है। ज्योतिर्लिंग ‘घुश्मेश’ के समीप ही एक सरोवर भी है, जिसे शिवालय के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि जो भी इस सरोवर का दर्शन करता है उसकी सभी इच्छाओं की पूरी हो जाती है। यह मंदिर अजंता और एलोरा की गुफाओं के निकट स्थित है। यह शिवलिंग शिव की परम भक्त रही घुष्मा की भक्ति का स्वरूप है। उसी के नाम पर ही इस शिवलिंग का नाम घुष्मेश्वर पड़ा था।

 

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18 वीं शताब्दी में हुआ था मंदिर का जीर्णोद्धार

इस मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार 18 वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। हर साल यहां देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग दर्शन के लिए आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद लेकर जाते हैं। वैसे तो यहां हमेशा ही भारी संख्या में दर्शनार्थी पहुंचते हैं, इसके अलावा यहां सावन माह के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

निसंतान दंपतियों को मिलता है संतान सुख का आशीर्वाद

शिव महापुराण में भी घुष्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का उल्लेख है। मान्यता है कि घुष्मेश्वर में आकर शिव के इस स्वरूप के दर्शन से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं। खासकर यहां निसंतान दंपति अपनी मनोकामना लेकर आती है। मान्यताओं के अनुसार जिस दंपत्ती को संतान सुख नहीं मिल पाता है उन्हें यहां आकर दर्शन करने से संतान की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अऩुसार यह वही तालाब है जहां पर घुष्मा स्वयं के द्वारा बनाए गए शिवलिंगों का विसर्जन करती थी और इसी तालाब के किनारे उसने अपना पुत्र जीवित मिला था। इसलिए इस जगह का बहुत अधिक महत्व माना जाता है और यहां आए श्रद्धालुओं की कामना जरूर पूरी होती है।

 

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पौराणिक कथा के अनुसार

इस ज्योतिर्लिंग के बारे में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जो कि इस प्रकार है। पौराणिक कथा के अनुसार दक्षिण दिशा में स्थिति देवपर्वत पर सुधर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण अपनी धर्मपरायण सुंदर पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। दोनों ही भगवान शिव के परम भक्त थे। कई वर्षों के बाद भी उनके कोई संतान नहीं हुई। लोगों के ताने सुन-सुनकर सुदेहा दु:खी रहती थी। अंत में सुदेहा ने अपने पति को मनाकर उसका विवाह अपनी बहन घुष्मा से करा दिया। घुष्मा भी शिव भगवान की अनन्य भक्त थी और भगवान शिव की कृपा से उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। सुदेहा ने इर्ष्या वश घुष्मा के सोते हुए पुत्र का वध करके पासे के एक तालाब में फेंक दिया। इतनी विपरित स्थिति के बावजूद घुष्मा ने शिवभक्ति नहीं छोड़ी और रोज की भांति वह उसी तालाब पर गई। उसने सौ शिवलिंग बना कर उनकी पूजा की और फिर उनका विसर्जन किया।

इसी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी प्रसन्न हुए और जैसे ही वह पूजा करके घर की ओर मुड़ी वैसे ही उसे अपना पुत्र खड़ा मिला। वह शिव-लीला से बेबाक रह गई क्योंकि शिव उसके समक्ष प्रकट हो चुके थे। अब वह त्रिशूल से सुदेहा का वध करने चले तो घुष्मा ने शिवजी से हाथ जोड़कर विनती करते हुए अपनी बहन सुदेहा का अपराध क्षमा करने को कहा। घुष्मा ने भगवान शंकर से पुन: विनती की कि यदि वह उस पर प्रसन्न हैं, तो वहीं पर निवास करें। भगवान शिव ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और घुष्मेश नाम से ज्योतिर्लिग के रूप में वहीं स्थापित हो गए।

कैसे पहुंचे

दौलताबाद महाराष्ट्र के औरंगाबाद के बाहरी इलाके में स्थित है। दौलताबाद स्टेशन से श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित है। दौलताबाद रेल और सड़क मार्ग से पूरे देश से जुड़ा हुआ है। यह औरंगाबाद-एलोरा सड़क पर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 211 के समीप है।

दक्षिण-मध्य रेलवे के काचीगुड़ा-मनमाड खंड पर स्थित दौलताबाद औरंगाबाद के समीप है। मनमाड से लगभग 100 किलोमीटर पर दौलताबाद स्टेशन पड़ता है। दौलताबाद से आगे औरंगाबाद रेलवे-स्टेशन है। यहां से वेरूल जाने का अच्छा मोटरमार्ग है, यहां से अनेक वाहन घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग तक के लिए चलते हैं। दौलताबाद से वेरूल का रास्ता मनोहारी पहाड़ियों के बीच से होकर गुजरता है। तो आप जब यहां जाएं तो इन प्राकृतिक झरोखों का आनंद लेना ना भूलें।



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