एक रात में हुआ था इस मंदिर का निर्माण, रातों-रात पूर्व से पश्चिम हो गया था मुख्य द्वार

भारत में कई मंदिर हैं जहां ऐसी घटनाएं और रहस्य हैं जिनके बारे में कोई जान नहीं पाया। बहुत सी खासियतों को लिये देश में ऐसे कई मंदिर हैं, जहां के बारे में कभी सोचें तो हमें उनके बारे में आश्चर्य और इन रहस्यों के बारे में जानने की उत्सुकता भी होती है।

 

ऐसा ही एक आश्चर्य और रहस्यमयी मंदिर बिहार के औरंगाबाद जिले में है, जिसके बारे में लोग बताते हैं की इस मंदिर ने खुद ही अपनी दिशा बदल ली थी और यह मंदिर मुरादों का मंदिर कहा जाता है। आइए जानते हैं इस रहस्यमयी मंदिर के बारे में कुछ ओर बातें....

 

surya mandir deo aurangabad

इसलिए मंदिर ने बदल ली थी दिशा

दरअसल, औरंगाबाद जिले के देव में एक रहस्मयी सूर्य मंदिर स्थापित है। इस मंदिर के बारे में लोगों का मानना है की यहां जो भी भक्त अपनी मुरादें लेकर आता है उसकी सभी मुरादें ज्लद पूरी हो जाती है। यह अद्भुत मंदिर अपने अंदर कई रहस्य समेटे हुए है। किवदंतियों के अनुसार इस मंदिर ने खुद ही अपनी दिशा बदल दी थी। इसके पीछे बहुत ही रोचक कहानी है।

कथा के अनुसार एक बार औरंगजेब मंदिरों को तोड़ता हुआ औरंगाबाद के देव पहुंचा। जब वह सूर्य मंदिर पहुंचा तो पुजारियों ने उससे मंदिरों को ना तोड़ने को लेकर बहुत विनती की, जिसके बाद उसने पुजारियों से कहा कि यदि सच में यहां भगवान हैं और इनमें शक्ति है तो इस मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम में हो जाए, अगर ऐसा हुआ तो में मंदिर को नहीं तोडूंगा।

औरंगजेब पुजारियों को मंदिर के प्रवेश द्वार की दिशा बदलने की बात कहकर अगली सुबह तक का वक्‍त देकर वहां से चला गया। जिसके बाद पुजारियों ने सूर्य देव से प्रार्थना कि और अगली सुबह पूजा के लिए पुजारी जब मंदिर पहुंचे तो उन्‍होंने देखा कि मंदिर का प्रवेश द्वार दूसरी दिशा यानी पश्चिम दिशा में था। बस तभी से सूर्य देव मंदिर का द्वार पश्चिम दिशा में ही है।

 

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देश का एकमात्र पश्चिमोभिमुख सूर्य मंदिर

देव स्थित सूर्य मंदिर देश का एकमात्र पश्चिमोभिमुख सूर्य मंदिर है। यहां सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों प्रातःकाल में, दोपहर में और शाम के समय में विराजमान है। काले और भूरे पत्थरों की अति सुंदर कृति देव के प्राचीन सूर्य मंदिर में देखने को मिलती है और दर्शन के लिए आए श्रृद्धालुओं को भावविभोर करती है। मंदिर की अद्भुत कलात्मकता भव्यता के कारण किवदंती है कि मंदिर का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथें से एक रात में किया था। इसके निर्माणकाल के विषय में सही जानकारी किसी के पास नहीं है। सूर्य मंदिर को देखने से ऐसा लगता है कि बिना किसी जुड़ाई के पत्थर से ही इस मंदिर का निर्माण करवाया गया है।

 

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दो भागों में बंटा है मंदिर

देव मंदिर दो भागों गर्भ गृह और मुख मंडप में बंटा है। करीब 100 फुट उंचे इस मंदिर का निर्माण बिना सीमेंट अथवा चूने-गारे का प्रयोग किए आयताकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार वगरेकार आदि कई रूपों में पत्थरों को काटकर बनाया गया है। इस मंदिर पर सोने का एक कलश है। किवदंतियों के अनुसार यह सोने का कलश यदि कोई चुराने की कोशिश करता है तो वह उससे चिपक कर रह जाता है। हर साल चैत्र मास व कार्तिक मास में होने वाले छठ पर्व पर यहां लाखों श्रद्धालु छठ व्रत करने के लिए जुटते हैं।



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