संतोषी माता की पूजा व उनके निमित्त व्रत से सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शुक्रवार के दिन खासकर कई लोग मां संतोषी का व्रत करते हैं और उनसे अपनी मनोकामना पूरी करने का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके अलावा संतोषी माता का एक मंदिर राजस्थान के जोधपुर में स्थापित है। यह मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है, जहां लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और पूरी होने का आशीर्वाद लेकर जाते हैं।
जोधपुर में संतोषी माता का यह प्रसिद्ध मंदिर शक्तिपीठ के रुप में भी जाना जाता है। यह मंदिर प्रगट संतोषी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है व जाना जाता है। इस मंदिर में मां संतोषी मूर्ति रुप में साक्षात विराजित रहती हैं। यहां भक्तों की लंबी कतारें लगती हैं। ना सिर्फ राजस्थान बल्कि आसपास के राज्यों से भी दर्शन के लिये लोग आते हैं। मंदिर कि बनावट को देखकर ऐसा लगता है जैसे मुख्य गर्भगृह की चट्टानें शेषनाग की भांति माता की मूर्ति पर छाया कर रही हों।
मंदिर में जलती है अखंड ज्योति, कोई नहीं लौटता खाली हाथ
जोधपुर के मंडोर रोड कृषि मंडी के पीछे स्थित इस मंदिर में वैसे तो सालभर ही भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन शारदीय नवरात्रि में यहां कतारों में लोग लगकर मां के दर्शन के लिये आते हैं। यही नहीं मंदिर के आसपास का मनोरम नजारा देखने भी दूर-दूर से लोग आते हैं।
दरअसल, मंदिर के आसपास लाल रंग की चट्टानें हैं जिन पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं जिसके कारण पूरा क्षेत्र लाल रंग की आभा से ऐसा नजर आता है मानो जैसे माता लाल चुनर फैलाकर यहां बैठी हैं। मंदिर में अखंड ज्योति जलती है और हवन-कीर्तन भी लगातार चलता रहता है। माना जाता है कि यहां आये हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है। कोई भी यहां से खाली हाथ नहीं लौटता है।
गुड़ चने का लगता है प्रसाद
माता को सिर्फ गुड़ और चना की प्रसादी चढ़ाई जाती है। सांखला ने बताया कि संतोषी माता की देश भर में एकमात्र प्रगट मूर्ति होने के कारण लोगों की आस्था है। मंदिर में माता के चरण दर्शन हैं। मंदिर विकास के लिए किसी तरह का कोई चंदा नहीं लिया जाता है और ना ही माता की चौकी लगाई जाती है।
सर्दियों में 7 और गर्मियों में सुबह 6 बजे खुलता है मंदिर
सर्दियों में मंदिर सुबह 7 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है जबकि गर्मियों में सुबह 6 बजे से रात को 9 बजे तक खुला रहता है। पहाड़ों के बीच लाल सागर नाम का एक सरोवर है। मंदिर के आस-पास काफी हरियाली है जहां नीम, पीपल, वट वृक्ष और अन्य कई भांति-भांति के वृक्ष हैं। इसी पहाड़ी के अंदर ऊपरी भाग में प्राकृतिक मातेश्वरी और सिंह का पदचिह्न बना हुआ है। मन्दिर के पास ही एक अमृत कुण्ड है, जिसके ऊपर कई वर्षों से एक ही आकार में हरा भरा वट वृक्ष है।
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