रामचरितमानस में छिपी है शिव कृपा, ऐसे समझें

ये तो आप भी जानते होंगे कि एक ओर जहां भगवान श्रीराम भगवान शंकर को अपना इश्वर मानते हैं तो वहीं भगवान शिव ने श्रीराम को अपना इष्ट मानते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रामचरितमानस के पाठ से भोलेनाथ शिव की भी कृपा प्राप्त होती है। इस संबंध में पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि भगवान राम जहां शिव को अपना इश्वर बताते हैं वहीं रामायण की कथा भगवान शंकर को अति प्रिय है। ऐसे में रामचरितमानस के पाठ से पहले भगवान शिव जी उपासना से मानस का पाठ जातक के लिए विशेष लाभकारी हो जाता हैं। वहीं इसके अलावा कई ऐसे श्लोक हैं जो व्यक्ति के जीवन को अलग अलग तरीके से सहारा देने का काम करते हैं। इनमें से चंद प्रमुख श्लोक इस प्रकार हैं, वहीं इनमें शिव जी द्वारा रामायण में श्री रघुबीर जी की वह स्तुति भी शामिल है, जिसके संबंध में मान्यता है कि इसे करने से जीवन में दुर्घटनाओं, अपयश और मुकदमों से रक्षा होती है।

रामचरितमानस के पाठ से पूर्व भगवान शिव जी की उपासना को ऐसे समझें...


पहला श्लोक
- पहला श्लोक है - "वन्दे बोधमयं नित्यं गुरु , शंकर रूपिणम । यमाश्रितो हि वक्रोपि , चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते* ।।"
- इस श्लोक में शिव जी को गुरु रूप में प्रणाम करके उनकी महिमा बताई गई है।
- पूजा उपासना करने के पूर्व इस श्लोक को पढ़ना चाहिए ताकि पूजा का पूर्ण फल मिल सके।
- यदि पूजा में कोई समस्या आ जाए तो शिव कृपा से वह समाप्त हो जाती है।

दूसरा दोहा
- दूसरा दोहा है - "महामंत्र जोई जपत महेसू , कासी मुकुति हेतु उपदेसू* ।"
- जब भी आप मंत्र जाप करना या सिद्ध करना चाहते हों उसके पहले यह दोहा पढना चाहिए।
- कारण ये है कि इसे पढ़ने से शिव जी की कृपा से तुरंत ही मंत्र सिद्ध भी होता है और प्रभावशाली भी।

तीसरा दोहा
- तीसरा दोहा है - "संभु सहज समरथ भगवाना , एही बिबाह सब विधि कल्याणा* ।"
- जब संतान के दाम्पत्य जीवन में समस्या आ रही हो, तब इस दोहे का प्रभाव अचूक होता है।
- नित्य प्रातः शिव जी के समक्ष इस दोहे का 108 बार जाप करें, फिर अपने संतान के सुखद दाम्पत्य जीवन की प्रार्थना करें ।

चौथा दोहा
- चौथा दोहा है - "जो तप करे कुमारी तुम्हारी , भावी मेटी सकही त्रिपुरारी* ।"
- अगर जीवन में ग्रहों या प्रारब्ध के कारण कुछ भी न हो पा रहा हो, तो यह दोहा अत्यंत फलदायी होता है।
- माना जाता है कि इस दोहे को चारों वेला कम से कम 108 बार पढने से भाग्य का चक्र भी बदल सकता है।
- परन्तु कुछ ऐसी कामना न करें जो उचित न हो।

पांचवा दोहा
- पांचवा दोहा है "तव सिव तीसर नयन उघारा , चितवत कामु भयऊ जरि छारा ।"
- अगर मन भटकता हो और अत्यंत चंचल हो तो यह दोहा लाभकारी होता है।
- जो लोग काम चिंतन और काम भाव से परेशान हों उनके लिए यह दोहा अत्यंत प्रभावशाली है।

छठवां दोहा
- छठवां दोहा है - "पाणिग्रहण जब कीन्ह महेसा , हिय हरसे तब सकल सुरेसा ।
*वेद मंत्र मुनिवर उच्चरहीं , जय जय जय संकर सुर करहीं* ।।"
- अगर विवाह होने में बाधा आ रही हो तो इस दोहे का जाप अत्यंत शुभ होता है।
- प्रातः काल शिव और पार्वती के समक्ष इस दोहे का जाप करने से शीघ्र और सुखद विवाह होता है।

सातवां दोहा
- सातवां दोहा है -"विश्वनाथ मम नाथ पुरारी , त्रिभुवन महिमा विदित तुम्हारी* ।"
- अगर आर्थिक समस्याएं ज्यादा हों या रोजगार की समस्या हो तो इस दोहे का जाप करना चाहिए।
- प्रातः और रात्रि के समय भगवान शिव के समक्ष कम से कम 108 बार इस दोहे का जाप करना चाहिए।

आठवां दोहा
- आठवां दोहा - शिव जी के द्वारा की गई श्री राम की स्तुति है।
- यह उत्तरकाण्ड में छन्द के रूप में उल्लिखित है।
- अगर केवल इसी स्तुति को नित्य प्रातः भाव से गाया जाय, तो जीवन की तमाम समस्याएं मिट जाती हैं।
- इस स्तुति को करने से व्यक्ति की, जीवन में दुर्घटनाओं, अपयश और मुकदमों से रक्षा होती है।

शिव जी द्वारा रामायण में श्री रघुबीर जी की स्तुति-
जय राम रमारमणं समनं । भव ताप भयाकुल पाहि जनं ॥
अवधेस सुरेस रमेस विभो । सरनागत मागत पाहि प्रभो ॥
दस सीस बिनासन बीस भुजा । कृत दूरी महा माहि भूरी रुजा ।
रजनीचर बृंद पतंग रहे । सर पावक तेज प्रचंड दहे ॥
महि मंडल मंडन चारूतरं । धृत सायक चाप निषंग बरं ।
मद मोह महा ममता रजनी । तम पुंज दिवाकर तेज अनी ॥
मनजात किरात निपात किए । मृग लोग कुभोग सरेन हिए ।
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे । विषया बन पाँवर भूली परे ॥
बाहु रोग बियोगन्हि लोग हए । भवदंध्री निरादर के फल ए ।
भव सिंधु अगाध परे नर ते । पद पंकज प्रेम न जे करते ॥
अति दीन मलीन दुखी नितहीँ । जिन्ह के पद पंकज प्रीती नहीं ।
अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें । प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें ॥
नहीं राग न लोभ न मान मदा । तिन्ह कें सम वैभव वा विपदा ।
एहि ते तव सेवक होत मुदा । मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ॥
करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ । पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ ।
सम मानी निरादर आदरही । सब संत सुखी बिचरंति महि ॥
मुनि मानस पंकज भृंग भजे । रघुवीर महा रनधीर अजे ।
तव नाम जपामि नमामि हरी । भव रोग महागद मान अरी ॥
गुन सील कृपा परमायतनं । प्रनमामि निरंतर श्रीरमणं।
रघुनंदन निकंदय द्वन्दधनं । महि पाल बिलोकय दीन जनं
बार बार बर मांगऊ हरिषि देहु श्रीरंग ।
पदसरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग ॥
बरनी उमापति राम गुन हरषि गए कैलास ।
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास॥



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