वामन द्वादशीः पढ़िए भगवान विष्णु के पहले मानव अवतार की कथा, त्रेता युग में रची थी वामन अवतार लीला

वामन द्वादशीः धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान वामन श्री विष्णु के पांचवे और त्रेता युग के पहले अवतार थे। दक्षिण भारत में इन्हें उपेंद्र के नाम से जाना जाता है। इस दिन दिन भर व्रत रखने के बाद संध्या काल में भगवान विष्णु के पहले मानव अवतार भगवान वामन की पंचोपचार पूजा अर्चना के साथ व्रत संपन्न किया जाता है। फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धापूर्वक इस स्वरूप की पूजा करते हैं, भगवान उनके सभी कष्टों को दूर करते हैं।


इस अवतार की कथा देव माता अदिति और महर्षि कश्यप से जुड़ी है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देव माता अदिति ने किसी समय भगवान विष्णु की तपस्या की थी। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया था, उनका पुत्र बनकर वे देवताओं का कल्याण करेंगे और राजा बलि के भय से मुक्त करेंगे।


इधर, दैत्यराज बलि ने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। पुत्र की दयनीय स्थिति से दुखी देव माता अदिति ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की, इस पर भगवान ने दर्शन देकर कहा कि चिंता मत करो मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लेकर इंद्र का खोया राज्य वापस दिलाऊंगा। वहीं महर्षि कश्यप की प्रेरणा से माता अदिति ने पयोव्रत का अनुष्ठान किया। समय आने पर उन्होंने वामन अवतार लिया।


बाद में महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ वामन भगवान का उपनयन संस्कार करते हैं। वामन बटुक महर्षि पुलह यज्ञोपवीत, अगस्त्य मृगचर्म, मरिचि पलाशदंड, सूर्य छत्र, भृगु खड़ाऊं, माता सरस्वती रुद्राक्ष माला, कुबेर भिक्षा पात्र देते हैं। बाद में वामन पिता की आज्ञा लेकर बलि के पास पहुंचते हैं। यहां नर्मदा के उत्तर तट पर राजा बलि स्वर्ग पर स्थायी अधिकार के लिए 100वां अश्वमेध यज्ञ करा रहे थे।

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राजा बलि ने वामन से पूछा- आप कौन हैं?
वामन उत्तर देते हैं- मैं ब्राह्मण हूं।
फिर राजा बलि प्रश्न करते हैं-आपका वास कहां है?
वामन उत्तर देते हैं-जो संपूर्ण ब्रह्मसृष्टि है वही हमारा निवास है। (राजा बलि ने सोचा जैसे सभी लोग इस सृष्टि में रहते हैं, वैसे ही यह ब्राह्मण भी सृष्टि में रहता है।


राजा बलि प्रश्न करते हैं-आपका नाथ कौन है?
ब्राह्मण देवता उत्तर देते हैं-हमारा कोई नाथ नहीं है, हम सबके नाथ हैं। (राजा अनुमान लगाता है कि हो सकता है ब्राह्मण के माता पिता की मृत्यु हो गई हो)
बलि फिर प्रश्न करते हैं- आपके पिता कौन हैं?


भगवान वामन जवाब देते हैं-पिता का स्मरण नहीं करते( अर्थात हमारा कोई पिता नहीं है, हम ही सबके पिता है।)
फिर बलि ने कहाः हमसे क्या चाहते हो?
भगवान वामन ने कहा-तीन पग धरती।


राजा बलि को आश्चर्य होता है कि ब्राह्मण तीन पग धरती में क्या करेंगे, वे कहते हैं ये तो बहुत थोड़ी जमीन है। इस पर भगवान वामन कहते हैं इसमें मैं तीनों लोकों की भावना करता हूं (हम तीन पग में तीनों लोक नाप लेंगे)। यह सुनकर दैत्य गुरु शुक्राचार्य उन्हें वचन देने से रोकते हैं पर राजा बलि ने संकल्प कर लिया।

इस पर भगवान वामन ने अपना विराट रूप धारण कर लिया। इसके बाद उन्होंने एक पग में सभी लोक दूसरे में धरती नाप लेते हैं। अब राजा बलि के सामने वचन निभाने का संकट आ गया कि अब वे बचन कैसे निभाएं तो उन्होंने अपना सिर सामने कर दिया। भगवान ने तीसरा पैर राजा बलि के सिर पर रख दिया।

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इसके बाद स्वर्ग देवताओं को लौटा दिया और राजा बलि को पाताल लोक भेज दिया, उनकी दानवीरता से प्रसन्न होकर वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर बलि भगवान से अपने पास दिन रात दिव्य लोक में रहने का वर मांगते हैं। वचन पालन करते हुए भगवान राजा बलि के द्वारपाल बन गए। हालांकि बाद में माता लक्ष्मी ने राजा बलि से वर मांगकर मुक्त कराया।



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