आज के लिए रामायण की सीख : जब भी मुश्किल परिस्थिति आए, तो धैर्य रखें, प्रतिष्ठा जरूर मिलती है

Ramayan: Learn to Bharat in difficulties don't give up, have patience: भरत अपने शीश पर भैया राम की चरणपादुका लेकर लौटे! अयोध्या की प्रजा अपने हृदय में राम का देवत्व ले कर लौटी। माता कौशल्या अपनी आंखों में अपने पुत्र का विराट व्यक्तित्व लेकर लौटीं। अपने बच्चों के हृदय में भरे निर्लोभ सेवाभाव को देखकर धन्य हुई माता सुमित्रा संतोष लेकर लौटीं। पर जो कैकई ने पाया वह कोई न पा सका था। अनायास ही हुए महापाप के बोझ से दब चुकी कैकई को जिन्होंने पल भर में ही अपराधमुक्त कर दिया था, कैकई ने उस मर्यादापुरुषोत्तम को सबसे पहले महसूस किया था।

उन्हें अनुभव हो रहा था कि कुछ ही वर्षों में उनका प्रिय बेटा जगतपिता के रूप में स्वीकार किया जाने वाला है। वे अपनी आंखों में अपने करुणानिधान, मर्यादापुरुषोत्तम बेटे की मोहक छवि बसाकर लौटीं... ज्येष्ठ की ओर आंख न उठाने की परम्परा से बंधी उर्मिला केवल अपने धर्मात्मा पति के लिए प्रेम लेकर गई थीं। वे लौटीं तो उनके पास उस प्रेम के अतिरिक्त कुछ आंसू की बूंदे थीं, जिनका मूल्य केवल वही जानती थीं। तीर्थ की तीर्थयात्रा पूरी हो गई थी।

भरत राममय होकर लौटे थे। आते ही स्पष्ट कर दिया कि भैया राम यदि चौदह वर्ष का वनवास भोगेंगे तो, भरत भी उसी दशा में जिएंगे। उन्होंने भी राम की ही भांति राजसी वस्त्र त्याग कर वल्कल धारण कर लिया। राजमहल से दूर राजधानी के बाहरी हिस्से में एक घास-फूस की कुटिया बनी और तय हो गया कि अयोध्या का कार्यकारी सम्राट इसी कुटिया में बैठे-बैठे प्रजा की सेवा करेगा।

सत्ता का महलों की जगह महात्माओं की कुटिया से संचालित होना ही रामराज्य के आगमन का प्राथमिक संकेत होता है। अयोध्या इसे अनुभव करने लगी थी।

वन से लौटने के बाद भरत माताओं को महल तक पहुंचाने गए थे। वहीं उन्होंने तीनों माताओं को अपना निर्णय बताया। सभी समझ रहे थे कि महात्मा दशरथ के पुत्र अपने वचन से डिगने वाले नहीं, यदि भरत ने ठान लिया है कि वे महल में नहीं रहेंगे तो, फिर उन्हें कोई रोक नहीं सकता। माताओं ने चुपचाप उनके निर्णय को स्वीकार कर लिया।

भरत के पीछे शत्रुघ्न ने भी अपना निर्णय सुना दिया। राम की परछाई बनकर लक्ष्मण वन को गए थे, अब भरत की परछाई बनकर शत्रुघ्न भी उनकी सेवा में ही जाने को तैयार खड़े थे। अपने ज्येष्ठ भ्राता के प्रति यह समर्पण की पराकाष्ठा संसार में केवल और केवल भारतीय परम्परा में दिखती है। यह समर्पण ही उस कुल को संसार का सबसे प्रतिष्ठित कुल बना रहा था।

अयोध्या के राजमहल से चारों राजकुमार चौदह वर्ष के लिए लगभग निर्वासित हो गए थे। यह हुआ था एक स्त्री के कह भर देने से। यह आर्य इतिहास में स्त्रियों की शक्ति थी।

माताओं से आज्ञा लेने के बाद भरत पत्नी मांडवी से मिलने गए। वे मांडवी को अपना निर्णय बताते इससे पूर्व ही उन्होंने कहा, आपने भी भैया की तरह कुटिया में साधु भेष में रहने का निर्णय लिया है न आर्यपुत्र! मैं स्वयं आपसे यही कहने वाली थी। इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता। नि:संकोच जाइए! हम आपसे दूर रह कर भी हर क्षण आपके साथ रहेंगे।

भरत चुपचाप देखते रह गए मांडवी को। विदेह कुमारियां सबको आश्चर्य में डाल रही थीं।

- क्रमश:

इस कहानी से हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिल सकती हैं-

प्रेम और समर्पण- भरत की पराकाष्ठा और सेवा भावना उनके भाई राम के प्रति दिखाती है। इससे हमें प्रेम और समर्पण का महत्व समझ आता है। इस कथा से आज के लिए हमें यह संदेश मिलता है कि मुश्किल परिस्थितियों का सामना करने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। धैर्य से हर समस्या का समाधान खोजना चाहिए। इससे भविष्य में हमें प्रतिष्ठा और सफलता जरूर मिलती है।

निष्ठा और वचनबद्धता- भरत अपने भाई राम के वचनों का पालन करने के लिए तैयार हैं, भले ही उसे अपने प्रिय महल को त्यागना पड़े।

स्त्री शक्ति- इस कहानी में एक स्त्री की बात के कारण राजकुमारों को चौदह वर्ष के वनवास की सजा मिली। यह हमें स्त्री शक्ति के महत्व को समझने के लिए प्रेरित करती है।

सेवा और समर्पण- राम और उनके भाइयों का राज्य अपनी सेवा के माध्यम से चलता था, जहां सत्ता महलों की जगह महात्माओं की कुटिया से संचालित होती थी।

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