Jitiya Jivitputrika Vrat 2025: वर्ष 2025 में, जीवित्पुत्रिका व्रत रविवार, 14 सितंबर को रखा जाएगा। इस व्रत के महत्व के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे 'जितिया' या 'जीउतिया' भी कहते हैं, संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए माताओं द्वारा किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है।ALSO READ: Shardiya navratri 2025: इस बार शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से, जानिए किस पर सवार होकर आ रही है मां दुर्गा
यह व्रत विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में बहुत लोकप्रिय है। कैलेंडर के मतांतर के चलते 2025 में यह व्रत 15 सितंबर, सोमवार को भी रखा जाने संभावना है, क्योंकि यह व्रत आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर पड़ता है...
जीवित्पुत्रिका व्रत : 14 सितंबर 2025 के मुहूर्त :
जीवित्पुत्रिका रविवार, सितंबर 14, 2025 को
आश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि का प्रारम्भ- 14 सितंबर 2025 को 05:04 ए एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त- 15 सितंबर 2025 को 03:06 ए एम पर।
14 सितंबर 2025: रविवार के योग और तिथि:
रवि योग, आडल योग तथा अष्टमी श्राद्ध, महालक्ष्मी व्रत पूर्ण, मासिक कृष्ण जन्माष्टमी, जीवित्पुत्रिका व्रत, अष्टमी रोहिणी, रोहिणी व्रत, कालाष्टमी रहेगी।
ब्रह्म मुहूर्त- 04:52 ए एम से 05:39 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 05:16 ए एम से 06:26 ए एम
अभिजित मुहूर्त- 12:09 पी एम से 12:58 पी एम
विजय मुहूर्त- 02:36 पी एम से 03:26 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 06:42 पी एम से 07:05 पी एम
सायाह्न सन्ध्या- 06:42 पी एम से 07:52 पी एम
अमृत काल- 11:09 पी एम से 12:40 ए एम, 15 सितंबर
निशिता मुहूर्त- 15 सितंबर से 12:10 ए एम से 12:57 ए एम तक।
रवि योग- 06:26 ए एम से 08:41 ए एम तक।
व्रत का महत्व:
• संतान की रक्षा: जीवित्पुत्रिका व्रत संतान को किसी भी तरह के संकट से बचाने के लिए रखा जाता है। माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान् विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, जो बच्चों की रक्षा करते हैं।
• लंबी उम्र: इस व्रत को रखने से बच्चों की उम्र लंबी होती है।
• पारिवारिक सुख: यह व्रत परिवार में सुख, शांति और समृद्धि लाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा विधि: जीवित्पुत्रिका व्रत 3 दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत 'नहाय-खाय' से होती है और 'पारण' के साथ समाप्त होता है।
- पहला दिन (नहाय-खाय) व्रत के पहले दिन, जिसे 'नहाय-खाय' कहते हैं, महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं। इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है, जिसमें लौकी, कद्दू, और नोनी का साग प्रमुख रूप से शामिल होता है।
- दूसरा दिन (निर्जला व्रत) यह व्रत का मुख्य दिन होता है। इस दिन माताएं पूरे दिन और रात निर्जला (बिना पानी पिए) रहती हैं। व्रत के दौरान भगवान् जीमूतवाहन, जीवित्पुत्रिका देवी, और भगवान् सूर्य की पूजा की जाती है।
1. पूजा की तैयारी: पूजा के लिए भगवान् जीमूतवाहन की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
2. सामग्री: पूजा की थाली में फल, फूल, सिंदूर, अक्षत (चावल), धूप, दीप, और प्रसाद रखें।
3. कथा वाचन: व्रत के दौरान जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी या पढ़ी जाती है, जिसमें जीमूतवाहन की कहानी का वर्णन होता है।
- तीसरा दिन (पारण) व्रत के तीसरे दिन, जिसे 'पारण' कहते हैं, महिलाएं सूर्योदय के बाद स्नान करके व्रत का पारण करती हैं। पारण के लिए दही, चावल, खीर और कुछ विशेष प्रकार के भोजन का सेवन किया जाता है।
यह व्रत माताओं के अटूट प्रेम और बलिदान का प्रतीक है, जो वे अपनी संतान के लिए करती हैं।
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