जोशीमठ में बद्रीनाथ मार्ग बंद होने का जिक्र (Joshimath To Badarinath): कई धार्मिक पुस्तकों में भविष्य में भूकंप, सूखे और जलप्रलय के बाद गंगा के लुप्त होने का वर्णन है। इन धार्मिक पुस्तकों में कहा गया है कि जोशीमठ के नृसिंह मंदिर की मूर्ति (Narsingh Mandir Murti Joshimath) की एक भुजा लगातार क्षीण हो रही है। धीरे-धीरे यह प्रतिमा खंडित हो जाएगी।
इसके बाद बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थ लुप्त होना शुरू कर देंगे। इसके बाद भूस्खलन (JoshimathSinking) के कारण नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे। इससे नर नारायण पर्वत के बीच स्थित बद्रीनाथ का मार्ग जोशीमठ से बंद हो जाएगा और भक्त बद्रीनाथ का दर्शन नहीं कर पाएंगे।
भविष्य बद्री तीर्थः इन पुस्तकों में कहा गया है कि भविष्य में बद्रीनाथ और केदारनाथधाम लुप्त हो जाएंगे और भविष्यबद्री नाम के नए तीर्थ का उद्गम होगा। यह स्थान भी चमोली में जोशीमठ (JoshiMath Temple) के पास सुभैन तपोवन में स्थित है। बतादें कि जोशीमठ वर्तमान बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम का मुख्य द्वार है। यहां से ही दोनों तीर्थस्थलों की ओर रास्ता जाता है। जोशीमठ से बद्रीनाथ 45 किलोमीटर तो केदारनाथ 50 किलोमीटर दूर है।
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कितना प्राचीन है तीर्थः इस तीर्थ की प्राचीनता का अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि स्कंद पुराण में भगवान शंकर माता पार्वती से कहते हैं कि हे प्राणेश्वरी यह क्षेत्र इतना प्राचीन है, जितना की मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा के रूप में परम ब्रह्मत्व को प्राप्त किया था। तभी से यह स्थान मेरा चिरपरिचित निवास है और केदारनाथ भूस्वर्ग के समान है। यह स्थान भगवान शंकर का आराम स्थान माना गया है।
रामायण, महाभारतकाल से पहले भी केदारनाथ तीर्थ का अस्तित्व रहा है। महर्षि वेदव्यास ने महाभारत के युद्ध में गोत्र हत्या और ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए पाण्डवों को केदारनाथ तीर्थ का दर्शन करने की सलाह दी थी। ब्रह्मा आदि देवता भी शिव के दर्शन के लिए यहां की यात्रा करते हैं। समय समय पर आदिशंकराचार्य, विक्रमादित्य और राजामिहिर भोज ने इस तीर्थ का जीर्णोद्धार कराया था।
वहीं बद्रीनाथ मंदिर की प्राचीनता के विषय में भी ठीक से जानकारी नहीं है। कहते हैं सतयुग में बद्रीनाथ धाम की स्थापना भगवान विष्णु ने की थी, यहां भगवान विष्णु आराम करते हैं। यह भी मान्यता है कि यह जगह पहले माता पार्वती और भगवान शिव का निवास स्थान था पर भगवान विष्णु को यह इतना पसंद आया कि उन्होंने बाललीला कर दोनों से यह स्थान ले लिया। इसे सृष्टि का आठवां बैकुंठ भी कहते हैं, जहां भगवान छह माह जागते हैं और 6 माह निद्रा में रहते हैं। इसे सबसे प्राचीन स्थान कहा जाता है। चमोली के कर्ण प्रयाग में स्थित इस जगह पर भगवान श्रीहरि विष्णु विराजमान हैं।
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यह भी मान्यता है कि इससे पहले आदि बद्रीनाथ तीर्थ स्थल था, जो लेकिन वर्तमान मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में रामानुज संप्रदाय के स्वामी बदराचार्य के कहने पर गढ़वाल के तत्कालीन नरेश ने कराया था। इंदौर के राज्य की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने यहां स्वर्ण कलश और छत्री चढ़ाया था। यह मंदिर अलकनंदा तट पर करीब 50 फीट ऊंचा है। इस क्षेत्र में कई गुप्त एवं प्रकट तीर्थ माने जाते हैं।
बद्रीनाथ से जुड़ी कहावतें: जोशीमठ उत्तराखंड समेत देशभर में बद्रीनाथ के महात्म्य से जुड़ी कहावतें प्रचलित हैं। इनमें से एक है कि जो आए बदरी ओ ना आए ओदरी। इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे दोबारा उदर यानी गर्भ में आने के जरूरत नहीं पड़ती यानी वह जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है अर्थात मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
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क्यों सुर्खियों में है जोशीमठः इन दिनों जोशीमठ शहर भूस्खलन (Joshimath Landslide) के कारण सुर्खियों में है। यहां जगह-जगह भूधंसाव हो रहा है। शहर के कई जगहों में दरारें ही दरारें नजर आ रहे हैं। शुक्रवार शाम को यहां सिंगधर वार्ड में भगवती मंदिर धराशायी (Bhagwati temple collapsed singdharward ) हो गया और 600 अधिक मकानों में दरारें आ गईं, सभी के पुनर्वास की कोशिश की जा रही है। शहर में बन रही ऑल वेदर सड़क आदि का काम बंद कर दिया गया है।
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बद्रीनाथ जाने का भी रास्ता जोशीमठ शहर से गुजरता है, इसलिए इस घटना का असर बद्रीनाथ (Joshimath To Badrinath) जाने के इच्छुक तीर्थ यात्रियों पर भी पड़ेगा। जोशीमठ में भूधंसाव (Joshimathissinking) के कारण एनटीपीसी परियोजना समेत सभी निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई है। वहीं आमलोगों में नरसिंह मंदिर की भुजा के संकुचित होने वाली कहानियों पर भी चर्चा हो रही है। सोशलमीडिया वेबसाइट आदि पर जोशीमठ बचाओ और #DevBhoomi ट्रेंड कर रहा है।
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